क्या याद हूँ मैं आपको
आज भी खुद को सोच कर
कांप सा जाता हूँ मैं
अपने उन बीते बेदर्द लम्हों को याद कर
अपने उन बीते बेदर्द लम्हों को याद कर
खुद में सहम सा जाता हूँ मैं
क्या आज भी याद हूँ मैं आपको ||
आज दशकों में सुमार होने को हूँ मैं
आज भी किसी के जुबाँ से सुनकर
खुद थर्रा उठता हूँ मैं
जब कभी खुद में झांकता हूँ मैं,
अपने अतीत के खौफ में
आज भी फड़फड़ा उठता हूँ मैं ||
खुद को देखने भर से
सहसा बौखला उठता हूँ मैं
मुझे याद है
अपनी नंगी नज़रों से देखे
क्रूरता भरे नजारें
खून से लथपथ
लाचार पड़े कुछ मासूम और वो निर्दोष बेचारें
दो तख्त के सहारे
खौफ़ में जलता सारा जहान
मुझे याद है ||
गुजर चूका हूँ मैं
उन बेजान पड़े
मासूम घर के बुझते चिरागों से
आज भी जल उठता हूँ मैं
याद कर उन गोलियों के तड़तड़ाहट से
भूल चुके हैं शायद आप
आज भी रोता हूँ मैं
महसूस कर उन चीखों और चीत्कारों को
मुझे याद है ||
खुद को भूलना चाहता हूँ मैं
बार बार आकर भी
कुछ धुंधला सा होना चाहता हूँ मैं
खुद को सम्भालकर आज याद करना चाहता हूँ मैं
उन तमाम शहीदों के स्मारकों को
जो घंटो नही दिनों तक खुद बिखरकर
मुझे समेटने की कोशिश करते रहें
क्या याद हूँ मैं आपको ?
मैं हूँ छब्बीस ग्यारह ||
Arun bhai shabdo ka chayan bahut achchha hai ...aapko apni ek kavita main jald he mail karunga ....aap apna mail id 7057324799 is no par WhatsApp kare ...pankaj wela
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