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शायद कुछ खफ़ा से है वों

शायद कुछ खफ़ा से है वों
कुछ मेरे बदले बदले से होने से
या खुद के जज़्बात में उलझे उलझे से होने से
इन दिनों कुछ खफ़ा खफ़ा से है वों ||

वक्त बेवक्त बिन बातों के बातों का होना
घंटो शांत पड़े
एक दूसरे के एहसासों का होना
सुबह शाम
किसी के होने के एहसासों का होना
हर पल बिन कुछ बोले
मुझ पर उनका
उनपर मेरा हक़ समझना
शायद इन दिनों कुछ उदास सा है
इसलिए कुछ खफ़ा से है वो ||

यह एहसास है उनको
कि कुछ बदले से हैं हम
किसी की दस्तक से
शायद परेशान से है वों 
मेरी बातों में किसी के जिक्र से
शायद हैरान से है वों
इसलिए शायद कुछ खफ़ा से है वो ||

अक्सर सांसों की तरह वो
जिन्दगी में बसा करते
इस बात से शायद अन्जान है वो
मेरे जीने के तरीके से
शायद परेशान है वों
मैं नही जानता
कि मुझमें क्या कुछ बदलाव सा है ||

हाँ, बस तू मेरे
सुबह की पहली धूप
ढ़लती शाम की छाव सा है
तुम्हें पता है
हममें कुछ एहसास सा है
मैं बदला नही
तुझसे दूर गया नही
कुछ बची जिन्दगी की आस सी है
जो तुझे लगती बदलाव सी है ||

आदत सी है
उनसे हर लम्हा बयाँ करने की
हसीं में साथ देने की
रोने में पास होने की
उनके बिन हर लम्हा
कुछ अधूरा सा है
हम बदल भी गये तो
कोई हैरानी नही
वो रूठ भी गये तो
कोई गम नही
उनके नाराज़गी बिन
ये रिश्ता अधूरा सा है ||

उनका आना
खुद में खोकर
कही गुम सा हो जाना
लेकिन उनका कुछ इस तरह बेचैन होना
मेरे बातों में उनका खुद को ढूँढना
शायद पहली दफ़ा है
इसलिए वो कुछ खफ़ा से है ||




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