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Showing posts from May, 2019

पहचान किस काम की

जब ज़माना हमें जान ले तो पहचान किस काम की जब इज़्ज़त हो पद नाम की शोहरत हो बस आज की अपनों में हम बदले से हो फिर ग़ैरों में हम ख़ास बने वो पहचान ही किस काम की ।। चाहत है लोग बुलाए उस नाम से जब गलियों में हम बदनाम थे चर्चे हो उन पागलपन के जब मंज़िल के हम पास न थे मुकाम नयी हो पर किस्से पुराने चेहरों की बस पहचान न हो ।। ऐसी है कुछ पहचान बनानी महफ़िल मंजिल के नाम सजी हो चर्चे हो बदनामी के हम मशहूर पड़े हो नजरों में पर बातें हो बस गुमनामी की ।।

तेरे हुस्न का आशियाना

राह बनानी थी एक आशियाना सजाना था ख़्वाब तो बहुत थे मेरे पर मुझे तो बस उन सपनों से टकराना था भला मुझे क्या पड़ी थी उस मुकाम की जहां पहुँचना मुक्कमल न हो ख़्वाब थी मिलने की सपने थे तुझे पाने की महल तो तेरे हुस्न का सजाना था फिर मंजिल की किसे पड़ी आशियाना तो बस एक बहाना था मुझे तो उस राह पर तुझसे टकराना था तेरी मुस्कान को देख अदाओं पर बिखर जाना था जब तू अदाओं पर गुमान करे बस उससे फ़िसलकर इस दिल मे जगह बनाना था ।।

गुफ़्तगू

उम्मीद न थी किसी रोज़ यूँ गुफ्तगू होगी तुमने कुछ कहा नही मैंने कुछ सुना नही मेरे कुछ जज़्बात है जिनका तुम्हें एतबार नही पर हुई गुफ़्तगू इशारों में तस्वीरों से झाँकती लब्जों को छिपाती नैन नजारों से अंजान थे पर इंसान थे भाव भी है एहसास भी है पर कुछ रिश्तों की दरकार भी है कुछ तो था उस पल जब शब्दों की बौछार कर मेरी पंक्तियों में बस गए न जाने क्यों हम सोच अब भी रहे गुफ़्तगू अब भी जारी है ...

तुम्हारा_नालायक_बेटा

हां, जायज़ था मुझसे, तुम्हारा नाराज़ होना ख़ुद के लिए नही दूसरों के लिए परेशान होना हां, मेरे ख़ुद के न होने का मतलब 'दूसरा' ही समझ आता था मुझे रिश्तों की क़दर कर सही और ग़लत की समझ के साथ लोगों को अपना बनाना सिखाया तुमने जो मेरी नज़र में परेशानी थी उसे जिम्मेदारी बताया तुमने सुबह की पहली किरण से रात के चमकते चाँद तक बात बात में फ़टकार लगाया तुमने तमाम ऐसी बातें थी जिसका मतलब समझाया तुमने मैं समझ न सका था उस रोज़ दरअसल हर डॉट में भी बस प्यार जताया तुमने माँ, अब नाश्तें, खाने और उन गंदे कपड़ों की बात न करूँगा मैं अब हर बात भी न बोल पाता मैं क्योंकि अब सुनते सभी बस कोई समझ न पाता मुझे समझता था, परिवार से इतर भी एक जहाँ है और इस अनोखी दुनियां में पाया भी मैंने पर अब भी जब किसी रोज़ थक कर बिन खाए सो जाता हूँ मैं तो ग्लास से भरा दूध और बालों की मालिश याद करता हूँ मैं हां, बड़ा तो हो चुका हूँ मैं जो अब तुम भी मुझे जताती हो पर बहुत छोटा महसूस करता हूँ मैं जब अपनी ज़रूरत पर भी मुझे देख, तुम चुप रहती और फिर भी शायद मैं समझ न पाता तुम्हें मिली हर आज़ादी जिसक
ठहर सा गया हूँ मैं सफ़र अब भी ज़ारी है तुम आए और निकल भी गए शायद पहचान न पाए मुझे मैं अब भी उसी राह पर पड़ा हूँ पहले नजरों के सामने खड़ा था अब तेरे कदमों तले बिखरा पड़ा हूँ मैं #तेरे_बिन_तेरे_बाद