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लम्हें दो लम्हें मेरे पास थे तुम

लम्हें दो लम्हें मेरे पास थे तुम
ठंडी हवाओं के बीच मेरे अहसासों में महफूज थे तुम
दिले-ए-चाहत के बहुत ही नजदीक थे तुम
उभरते जज्बातों के करीब थे तुम
मेरे नजरों से दूर ख्यालों के समीप थे तुम ||
कुछ पल में अपने शहर की गलियों में छुप कर
मेरे दिल के आशियानें में मशहूर थे तुम
अब खुले आसमां में भी बंद कमरे सी खुद में मशगुल हो तुम ||
हम दरवाजे पर दस्तक देते रहे,
हवा का झोका समझ कर अपनी सोच में महफूज रहे तुम ||
नजरें ढूढ़ती रही, जज्बात रस्तों पर मचलते रहे
अपनी मदमस्त अदाओं के महल में चमकते खुद में चूर रहे तुम
तेरी तलाश में दिल की गलियों में दिल्लगी न टिकी
अब पल पल करीब होकर भी दिल से फिसलते दूर हो तुम ||

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