कुछ तो था आज
सुबह सुबह की ठंडी हवा
कुछ धुंधला सा पड़ा शांत शहर
मद्धम मद्धम बिखरती सूरज की लालिमा
खुले आसमान में एक दूसरे को कैद करती हमारी नजरें
कुछ लम्हों में सिमटा बहुत कुछ था आज ||
खुली आखों से सुबह सुबह तुम्हे देखने की चाहत
मेरी तरफ बढती तुम्हारे कदमों की आहट
कहीं दस्तक दे रही थी
बढ़ रही थी मेरे दिल की चाहत
कुछ ही पल में सिमटे थे लम्हे हजार
कुछ तो था आज ||
ढ़लती रात की तरह
मेरा तेरी आँखों में डूबना
उगते दिन की तरह
तेरा मेरी तरफ बढ़ना
खिलते सूरज के साथ आसमां में पसरे धुंध का बिखरना
मेरे बिखरते लब्जों में तुम्हारा खुद को महसूस करना
कुछ नया सा था आज ||
कुछ ऐसा ही था जैसे
उगते सूरज की रौशनी में
अपने चाँद को देखने की चाहत
सुबह सुबह बहती ठंडी हवाओं में
कुछ गर्म अहसासों को खुद में समेटने की चाहत
कुछ नही शायद बहुत कुछ था आज ||
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