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कुछ शिकायतों के दौर सा है

कुछ शिकायतों के दौर सा है
कुछ मेरा कुछ किसी और सा है
किसी और से उम्मीद न थी कुछ
शायद खुद के अरमानों से बेख़ौफ़ सा है ||

अजीब सी बेबसी है जिन्दगी की
कुछ सच कुछ झूठ सा है
वो मुझे समझ रहे मैं उन्हें समझा रहा
अजीब उलझनों का दौर सा है
न जाने क्या सुलझाने की कोशिश कर रहा
मुद्दा दिल में उलझे किसी के फरेब सा है ||

नजर किसी को देख रही, निहार रही
मन उनमें मचलता किसी गली के मोड़ सा है
यह संभलना चाहता है कुछ पल खुद से
कमबख्त दिल सुनता न किसी और का है
खुद से खुद को शिकयतों का दौर सा है ||

किसी के याद में पल पल खो सा जाता है
उनकी गैरमौजूदगी में भी
किसी के साथ होने के पल पल भ्रम सा है
दिल तो बिखर कर भी सम्भलना चाहता
न जाने क्यों किसी के खोने के डर सा है ||

हर दफ़ा मन समझाता रहा उनकी ओर बढने से
कमबख्त हर पल दिल उनमें डूबने को मजबूर सा है
हम बेवजह पल पल मशगुल हैं उनमें
शायद खुद को तलाशने का यह शौक सा है
जिंदगी कुछ पल मुसाफ़िर बन हमे आजमाती गयी
उनसे रूबरू होकर भी न जाने क्यूँ हम वादे निभाते गये
अब खुद को खुद से कुछ शिकायतों के दौर सा है ||



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