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जिस्म की तेरे तारीफ़ करूँ तो सदियाँ गुजर जाय

जिस्म की तेरे तारीफ़ करूँ तो सदियाँ गुजर जाय
दो दो शब्दों में भी पूरा गजल बन जाय 
दो शब्द तेरी काली आखों पर लिखूं 
दो शब्द तेरे सुलझे बालों पर लिखूं 
तेरी मुस्कान पर जब लिखूं तो पूरी पंक्तियाँ कम पड़ जाय ||

तेरे मुस्कान से उतरकर अदाओं पर लिखू तो 
तेरे सुलझे जुल्फों के छोर पर ये बिखरें नजर उलझ जाय 
तेरे उलझे नज़रों पर लिखना शुरू करूँ तो 
ये दिल तेरे आँखों की गहराइयों में डूब जाय ||

कुछ शब्द तेरे गुलाबी गालों को दूं 
कुछ शब्द तेरे माथे के सुनहरे सिलवटों को
अभी तक नजर, तेरे चाँद से चहरे पर टिकी रही 
जब करवट लेती तेरी अदाओं पर उतरू तो 
तो पूरा का पूरा दिल फिसल जाय ||

तेरे जिस्म की तारीफ में दर-बदर शब्द भी गुम हो जाय 
जिस्म तो एक जरिया है तेरे लब्जों के सहारे दिल तक पहुँचने का 
कभी फुर्सत हो तो नजरों के सहारे ही सही 
मेरे आँखों में झाककर दिल की बैचेनी को समझना 
इस बेचैन धड़कन को देखकर पत्थर दिल भी न पिघल जाय तो कहना ||

कभी अहसासों को जिस्म से इतर दिल की धडकनों में सुनना 
पल दो पल की खबर से ही शायद तेरा नजरिया बदल जाय 
इस बेचैन दिल के खातिर तेरे अदाओं से तुझे रूबरू करना जरूरी तो नही  
फिर भी काश तू अल्फाजों में बयाँ किये बगैर समझ जाय 
क्युकी अगर तेरे जिस्म की तारीफ़ करने बैठू तो सदियाँ गुजर जाय....


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