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Showing posts from January, 2019
दिल्ली से किसी रोज़ गुज़रा एहसासों के एक दौर से निकला उन एहसासों को शब्दों में पिरोना क्या शुरू किया ये दिल भी उनका दीवाना हो उठा सफ़र शहर दर शहर बढ़ता गया इन शब्दों के माया जाल में लोग भी उलझते गए दरकार तो इस बात की रही इन शब्दो की दिल्लगी पर दिल तो सभी को आया पर इनके दरवाजों से झाक छिपे दिलबर तक न पहुँच पाए फिर याद आया शहर दिल तो वही, पर दिल्लगी न हुई 
ख़ामोश हूँ इस चहल पहल में बसा कुछ यादों के भीड़ में खड़ा बस खामोश हूँ। देख रहा हूँ तुम्हारे चेहरे के बदलते इन रंगों को पढ़ रहा हूँ जीवन के बदलते हर ढंग को कैसे तुम कुछ लम्हों में आकर सदियों सी छाप छोड़ गए दरअसल खुद की परछाई में अब भी तुमको समझ रहा हूँ ।। शायद समझ चुका हूँ या समझने की कोशिश कर रहा हूँ पर तुम निकल चुके हो बदल चुके हो मैं अब भी आसमां सी खुली इस जीवन मे गुज़रे लम्हों की कहानियों को सुन रहा हूँ पर खामोश हूँ । ख़ामोश हूँ क्योंकि इस बदलतें वक़्त के साथ तुम्हें बदला हुआ देखकर अब भी मैं, खुद को नही बदलना चाहता क्योकिं अब भी मैं वही हूँ बस ख़ामोश हूँ ।।