Skip to main content

Posts

Showing posts from November, 2017

कुछ शिकायतों के दौर सा है

कुछ शिकायतों के दौर सा है कुछ मेरा कुछ किसी और सा है किसी और से उम्मीद न थी कुछ शायद खुद के अरमानों से बेख़ौफ़ सा है || अजीब सी बेबसी है जिन्दगी की कुछ सच कुछ झूठ सा है वो मुझे समझ रहे मैं उन्हें समझा रहा अजीब उलझनों का दौर सा है न जाने क्या सुलझाने की कोशिश कर रहा मुद्दा दिल में उलझे किसी के फरेब सा है || नजर किसी को देख रही, निहार रही मन उनमें मचलता किसी गली के मोड़ सा है यह संभलना चाहता है कुछ पल खुद से कमबख्त दिल सुनता न किसी और का है खुद से खुद को शिकयतों का दौर सा है || किसी के याद में पल पल खो सा जाता है उनकी गैरमौजूदगी में भी किसी के साथ होने के पल पल भ्रम सा है दिल तो बिखर कर भी सम्भलना चाहता न जाने क्यों किसी के खोने के डर सा है || हर दफ़ा मन समझाता रहा उनकी ओर बढने से कमबख्त हर पल दिल उनमें डूबने को मजबूर सा है हम बेवजह पल पल मशगुल हैं उनमें शायद खुद को तलाशने का यह शौक सा है जिंदगी कुछ पल मुसाफ़िर बन हमे आजमाती गयी उनसे रूबरू होकर भी न जाने क्यूँ हम वादे निभाते गये अब खुद को खुद से कुछ शिकायतों के दौर सा है ||

शायद किसी रोज समझो तुम ...

शायद किसी रोज समझो तुम वक्त बेवक्त जहन में चलते किसी के अहसास को किसी को याद कर बदलते मुस्कान को मेरी कविताओं में हर पल लिखे किसी के बात को मेरी चाहत है कि किसी रोज समझो तुम || वैसे तो तुम्हे पागल सा लगता हूँ महसूस किये हर एक लम्हें को लिखते हुए पर उम्मीद है किसी रोज समझोगे तुम बस दो पल में बुने हर लम्हें के दिल-ए-अहसास को || बातों ही बातों में हुई हर बात को मेरे पागलपन के पीछे छिपे दिल-ए- आवाज को छोटे छोटे टुकड़ो में लिखे मेरे हर अल्फाज़ को लिखता हूँ हर पल कि शायद किसी रोज समझ सको तुम हर शब्द में छिपे राज को || कभी सोचता हूँ, बयाँ कर दूँ लब्जों में मेरी चाहत में छिपे हर शब्द के राज को पर रोकता हूँ खुद को हर पल इस इंतज़ार में, शायद खुद किसी रोज समझो तुम || बस लिखते रहने चाहता हूँ तुम्हारी नजरों में छपे एक पागल कवि के हर बात को जो तुम्हें लगता, बस नयेपन में लिखता हर बात को पर तुम्हें देखकर ही सीखा वो लिखना अपने दिल के हर बात को नही चाहता यूं ही बेपर्दा करना दिल में छिपे हर ख्वाब को क्योकि इस दिल को अब भी लगता शायद किसी रोज समझो तुम ....

कुछ तो था आज ...

कुछ तो था आज सुबह सुबह की ठंडी हवा कुछ धुंधला सा पड़ा शांत शहर मद्धम मद्धम बिखरती सूरज की लालिमा खुले आसमान में एक दूसरे को कैद करती हमारी नजरें कुछ लम्हों में सिमटा बहुत कुछ था आज || खुली आखों से सुबह सुबह तुम्हे देखने की चाहत मेरी तरफ बढती तुम्हारे कदमों की आहट कहीं दस्तक दे रही थी बढ़ रही थी मेरे दिल की चाहत कुछ ही पल में सिमटे थे लम्हे हजार कुछ तो था आज || ढ़लती रात की तरह मेरा तेरी आँखों में डूबना उगते दिन की तरह तेरा मेरी तरफ बढ़ना खिलते सूरज के साथ आसमां में पसरे धुंध का बिखरना मेरे बिखरते लब्जों में तुम्हारा खुद को महसूस करना कुछ नया सा था आज || कुछ ऐसा ही था जैसे उगते सूरज की रौशनी में अपने चाँद को देखने की चाहत सुबह सुबह बहती ठंडी हवाओं में कुछ गर्म अहसासों को खुद में समेटने की चाहत कुछ नही शायद बहुत कुछ था आज  ||

क्या याद हूँ मैं आपको ?

क्या याद हूँ मैं आपको आज भी खुद को सोच कर  कांप सा जाता हूँ मैं अपने उन बीते  बेदर्द लम्हों को याद कर खुद में सहम सा जाता हूँ मैं  क्या आज भी याद हूँ मैं आपको || आज दशकों में सुमार होने को हूँ मैं  आज भी किसी के जुबाँ से सुनकर  खुद थर्रा उठता हूँ मैं  जब कभी खुद में झांकता हूँ मैं, अपने अतीत के खौफ में  आज भी फड़फड़ा उठता हूँ मैं || खुद को देखने भर से  सहसा बौखला उठता हूँ मैं  मुझे याद है  अपनी नंगी नज़रों से देखे  क्रूरता भरे नजारें  खून से लथपथ  लाचार पड़े कुछ मासूम और वो निर्दोष बेचारें  दो तख्त के सहारे  खौफ़ में जलता सारा जहान  मुझे याद है || गुजर चूका हूँ मैं  उन बेजान पड़े  मासूम घर के बुझते चिरागों से  आज भी जल उठता हूँ मैं  याद कर उन गोलियों के तड़तड़ाहट से  भूल चुके हैं शायद आप  आज भी रोता हूँ मैं  महसूस कर उन चीखों और चीत्कारों को  मुझे याद है || खुद को भूलना चाहता हूँ मैं   बार बार आकर भी  कुछ धुंधला सा होना चाहता हूँ मैं  खुद को सम्भालकर आज याद करना चाहता हूँ मैं  उन तमाम शहीदों के स्मारकों को  जो घंटो

शायद कुछ खफ़ा से है वों

शायद कुछ खफ़ा से है वों कुछ मेरे बदले बदले से होने से या खुद के जज़्बात में उलझे उलझे से होने से इन दिनों कुछ खफ़ा खफ़ा से है वों || वक्त बेवक्त बिन बातों के बातों का होना घंटो शांत पड़े एक दूसरे के एहसासों का होना सुबह शाम किसी के होने के एहसासों का होना हर पल बिन कुछ बोले मुझ पर उनका उनपर मेरा हक़ समझना शायद इन दिनों कुछ उदास सा है इसलिए कुछ खफ़ा से है वो || यह एहसास है उनको कि कुछ बदले से हैं हम किसी की दस्तक से शायद परेशान से है वों  मेरी बातों में किसी के जिक्र से शायद हैरान से है वों इसलिए शायद कुछ खफ़ा से है वो || अक्सर सांसों की तरह वो जिन्दगी में बसा करते इस बात से शायद अन्जान है वो मेरे जीने के तरीके से शायद परेशान है वों मैं नही जानता कि मुझमें क्या कुछ बदलाव सा है || हाँ, बस तू मेरे सुबह की पहली धूप ढ़लती शाम की छाव सा है तुम्हें पता है हममें कुछ एहसास सा है मैं बदला नही तुझसे दूर गया नही कुछ बची जिन्दगी की आस सी है जो तुझे लगती बदलाव सी है || आदत सी है उनसे हर लम्हा बयाँ करने की हसीं में साथ देने की रोने में पास होने की उनके बिन हर लम्

जिन्दगी ये जीना चाहती है

जिन्दगी ये जीना चाहती है अपनी दुनिया के करीब आकर पल पल तुझे देखना चाहती है अपनी दुनियां को देखकर हर पल महसूस करना चाहती है जिंदगी ये जीना चाहती है || अपनी दुनियां के हर बेखबर ख्वाब का पल पल खबर लेना चाहती है अपने ख्वाबों को सपनों के शहर की तरह इस दुनियां में जीना चाहती है जिन्दगी अब जीना चाहती है || अपनी दुनिया में कुछ पल रहना चाहती है जिसमें उलझे तमाम ख्वाब कुछ एहसास है उन ख्वाबों में उलझ कर तेरे एहसासों में सुलझना चाहती है जिन्दगी अब जीना चाहती है || अपनी दुनियां में हर सुबह कुछ रौशनी बिखेरना चाहती है हर ढलते शाम को लालिमा बिखरते डूबते सूरज की भाति भी खूबसूरत देखना चाहती है जिन्दगी अब जीना चाहती है || अपनी दुनियां में बिन कोई नया आशियाना बसाये अपने दिल के आशियानें में तुझे जीते देखना चाहती है तू मेरी एक गढ़ी हुई दुनिया जिसमें ये जिन्दगी कुछ पल जीना चाहती है ||

मुझे पता है ...

पता है तुमने महसूस किया मेरी गैरमौजूदगी में मेरी मौजूदगी को हैं मेरे एहसासों के कुछ कण  तेरे उफान लेती जिन्दगी में भी मुझे पता है || बेखबर था कुछ पल मेरी तरफ देखते तेरे नजरों के परवाह से खुद में खुद से समेटे जा रहा था अपने दिल के एहसास को क्योंकि पता है नही चाहते तुम कि तुमसे कोई उम्मीद या आस हो || तेरी खुश्बू का मेरे जहन में होना मेरे इत्र की खुश्बू में तेरा मुझे महसूस करना हाँ मैं ही हूँ अपने इश्क़ का फरमान लिए मेरे ख्वाबों में तेरे संग अपना जहान लिए || मुझे पता है तुम रूबरू हो इन एहसासों से हमारी छोटी सी जिन्दगी के बुनते बड़े बड़े ख्वाब से तुम ख्वाब होकर भी मेरे पास हो हाँ मैं हूँ, तुम दूर या पास हो ||

मैं शायर तुम शायरी

अब तुम्हे लिखने के हम कुछ यूं आदि हो गये हमारे जुबाँ से निकले शब्द तुम्हारे जुल्फों में खो गये तुम्हारें आखों की गहराइयों में एक एक शब्द सिमट कर तुम्हारी गुलाबी गालों से फिसलकर खिलती मुस्कान पर बिखर गये तुममें खोये खोयें हुए हम कुछ यूं शब्दों में उलझते रहे कि हम शायर और तुम हमारी शायरी बन गये ||

अच्छा लगता है..

अच्छा लगता है तुम्हारा कुछ कहना मेरा सब सुनना अच्छा लगता है मेरा कुछ न कहना तुम्हारा सब समझ कर कुछ न समझना अच्छा लगता है || छोटी छोटी बातों पर तुम्हारा हँसना हँसते हँसते बहुत कुछ समझना उन्हें महसूस कर चुप सा रहना अच्छा लगता है || तुममें हर पल पागलपन को देखना दो पल तुम्हे निहारते मेरे नजरों को देखकर मुझे पागल सा समझना अच्छा लगता है || बिन वजह मेरा तुमपर ऐतबार करना तमाम वजह होते हुए भी तुम्हारा इकरार न करना तुम्हारा दूर होकर भी पास महसूस होना मेरे पास होने पर तुम्हारा खुद से गुप्तगू करना अच्छा लगता है || मेरे इंतजार में तुम्हारा खुद की नज़रों को अनदेखा करना तुम्हारी एक मुस्कान के इंतजार में तुझपे नजरें टिकाए रखना आस पास होते हुए भी मेरा बेचैन सा होना मुझे आस पास देखकर खुद का सुकून में होना अच्छा लगता है || घंटो दूर रहकर दो पल का पास आना दो पल साथ होकर कुछ फासलों से दूर हो जाना  जिस्म से दूर होकर अहसासों के करीब होना अच्छा लगता है ||

बेवक़्त वक़्त

बेवक्त वक्त की खोज में आया आंखो में नीर ले बैठा कह न पाया समझा न सका ह्रदय में ऐसी पीर ले बैठा गलतियाँ करते अब गलत हो गया मैं नाराज अपनी हीर कर बैठा मान जाएगी, मेरी है वो;अब! ह्रदय में ऐसी धीर लिए बैठा उसके सिवा और है क्या मेरे पास मैं भाव को शरीर कर बैठा इंतजार करना है;करूंगा। मैं खुद को फकीर कर बैठा मुहब्बत है उनसे, निभाएंगे बात को पत्थर की लकीर कर बैठा। #संजय

चाँद में दाग ....

सुना था चाँद में भी दाग है वो चाँद को निहारे जा रहीं थी हम उन पर दाग को तलाशते रहे वो उनके अलग अलग हिस्सों को पढ़े जा रहीं थी हम पूरे चाँद को समझने की कोशिश करते रहे || वो उनपर अँधेरे में छिपे सजावटों को निहार रहीं थी हम चाँद के किनारें पर खड़े खुद को समझा रहे || वो अपनी काली आँखों को उन पर टीकाए पढ़े जा रहीं थी हम पल पल अपने नजरों में उन्हें लिखते रहे || वो बंद दराज में खोए सातवें चाँद को तलाश रहीं थी हम बंद दराज के बाहर चमक रहे चाँद को करीब से महसूस करते रहे || वह सातवें चाँद को अब तक दर बदर ढूंढ रहीं थी हम आखिरी तक उन्हें साथ लेकर उनमें दाग तलाशते रहे ...

बेहद लिहाज करते है वो हमारा...

 बेहद लिहाज करते है वो हमारा  खुद के होठों से लगाकर मोहब्बत किया करते है  अपने सीने में बसाकर सुकून में जिया करते है  अक्सर दिल में उठते आग, जहन में भड़कते गुस्से में  बड़े मोहब्बत से मेरा सहारा लिया करते है  कुछ यूं  लिहाज करते है वो हमारा || कुछ यूं मोहब्बत करते है वो हमसे अपने सीने में जल रही आग को मुझे जलाकर ठंडा किया करते है दूसरों के नजरों के सामने भी मुझे बेशर्मी से चूमा करते है || अक्सर अपने होठों से चूमने के बाद दूसरों के चाहत में कुछ पल मुझे खोया करते कुछ यूं पल पल जलते हुए किसी और के चाहत के बोझ तले बिखर जाते अरमान हमारे फिर अक्सर उन्हें बड़े प्यार से समेट कर मुझमे जलते आग तक चूमा करते वो कुछ यूं लिहाज करते है वो हमारा || मेरे आग को अपने सीने में दफ़न कर बस दो पल में मुझे हवाओं में उड़ा दिया करते दिल की आग न बुझी हो तो एक फिर अपने आगोश में लिया करते अक्सर दिल भरने के बाद, हमें होठों से लगाकर अपने पैरों तले कुचल दिया करते जी ! बेहद लिहाज करते है वो हमारा || #सिगरेट

जिस्म की तेरे तारीफ़ करूँ तो सदियाँ गुजर जाय

जिस्म की तेरे तारीफ़ करूँ तो सदियाँ गुजर जाय दो दो शब्दों में भी पूरा गजल बन जाय  दो शब्द तेरी काली आखों पर लिखूं  दो शब्द तेरे सुलझे बालों पर लिखूं  तेरी मुस्कान पर जब लिखूं तो पूरी पंक्तियाँ कम पड़ जाय || तेरे मुस्कान से उतरकर अदाओं पर लिखू तो  तेरे सुलझे जुल्फों के छोर पर ये बिखरें नजर उलझ जाय  तेरे उलझे नज़रों पर लिखना शुरू करूँ तो  ये दिल तेरे आँखों की गहराइयों में डूब जाय || कुछ शब्द तेरे गुलाबी गालों को दूं  कुछ शब्द तेरे माथे के सुनहरे सिलवटों को अभी तक नजर, तेरे चाँद से चहरे पर टिकी रही  जब करवट लेती तेरी अदाओं पर उतरू तो  तो पूरा का पूरा दिल फिसल जाय || तेरे जिस्म की तारीफ में दर-बदर शब्द भी गुम हो जाय  जिस्म तो एक जरिया है तेरे लब्जों के सहारे दिल तक पहुँचने का  कभी फुर्सत हो तो नजरों के सहारे ही सही  मेरे आँखों में झाककर दिल की बैचेनी को समझना  इस बेचैन धड़कन को देखकर पत्थर दिल भी न पिघल जाय तो कहना || कभी अहसासों को जिस्म से इतर दिल की धडकनों में सुनना  पल दो पल की खबर से ही शायद तेरा नजरिया बदल जाय  इस बेचैन दिल के खातिर तेरे

अक्सर छोटी छोटी सी बातें हुआ करती है...

अक्सर छोटी छोटी सी बातें हुआ करती है जो बड़ी बड़ी यांदे बुना करती है  दो पल की जिन्दगी में भी अक्सर बड़े ख्वाब हुआ करते है  मेरे बड़े बड़े ख्वाब तेरी छोटी छोटी बातों से बना करते है || तुम्हारा बात बात पर रूठ जाना  पल पल तेरी गलती को खुद से भुनाना  दो पल की बातों में भी तेरा कही और मशगुल हो जाना  मेरे एक पल की गैरमौजूदगी में भी तेरा रूठ जाना  अक्सर छोटी छोटी बातें हुआ करती है || मेरे आने न आने की उम्मीद में  सवालों की लड़ी लगाना  फिर तेरा बार आकर कुछ लम्हें बिताना  कुछ ही पल में किसी और रस्ते घंटो के लिए चले जाना  अक्सर छोटी छोटी बाते हुआ करती है || तेरे होने भर से खुद में खो जाना  बिन वजह पल पल खुश हो जाना  मेरे पास होकर भी दूर निकल कर  तेरा खुद में कहीं गुम हो जाना  अक्सर छोटी छोटी बाते हुए करती है || घंटो तेरे इंतजार में, नजर बिछाए रखना  मेरी मौजूदगी को देख कर तेरा अनदेखा करना  तेरी बातो को याद कर, मेरा आँखे बंद कर तुझे महसूस करना  मेरी बयाँ शब्दों को समझकर भी तेरा खुद में सिमट जाना  अक्सर छोटी छोटी बाते हुआ करती है || छोटी छोटी बा

एक एहसास है .....

एक एहसास है ..... किताबों में सिमटी कोई कहानी नही लब्जों में बयाँ की गयी कोई जुबानी नही  जिसे जब मन किया बस लिख दिया, वो मनमानी नही  अनगिनत शब्दों में भी बयाँ न कर पाऊ अगर,तो कोई हैरानी नही  यह एक एहसास है, जिसे महसूस करने की कोई मनाही नही || अक्सर उगते सूरज की छटाओं में बिखरते नही  ढलते शाम की रोशनी में सिमटे नही  एक एहसास जो किसी के होने न होने से बदलते नही  मन को चाहे लाख मना लू, दिल की धडकने किसी और को सुनती नही || कई दफ़ा कोशिश की धडकते दिल को मना करने की  पर चमकते चाँद से भी दाग कभी हटते नही  कुछ पल रुख कही और मोड़कर मंजिल कभी बदलती नही  कोशिशे तमाम कर लू हवाओं के रफ्तार में निकलने की  पर एहसास है जो दिल से कभी फिसलते नही  तुम दूर हो या पास कभी बदलते नही ||

लम्हें दो लम्हें मेरे पास थे तुम

लम्हें दो लम्हें मेरे पास थे तुम ठंडी हवाओं के बीच मेरे अहसासों में महफूज थे तुम दिले-ए-चाहत के बहुत ही नजदीक थे तुम उभरते जज्बातों के करीब थे तुम मेरे नजरों से दूर ख्यालों के समीप थे तुम || कुछ पल में अपने शहर की गलियों में छुप कर मेरे दिल के आशियानें में मशहूर थे तुम अब खुले आसमां में भी बंद कमरे सी खुद में मशगुल हो तुम || हम दरवाजे पर दस्तक देते रहे, हवा का झोका समझ कर अपनी सोच में महफूज रहे तुम || नजरें ढूढ़ती रही, जज्बात रस्तों पर मचलते रहे अपनी मदमस्त अदाओं के महल में चमकते खुद में चूर रहे तुम तेरी तलाश में दिल की गलियों में दिल्लगी न टिकी अब पल पल करीब होकर भी दिल से फिसलते दूर हो तुम ||

उन्होंने कुछ कहा और सोचते रहे हम

उन्होंने आज कुछ कहा और सोचते रहे हम "आज कुछ बदल से गये हम थोड़े से खुद में मगरूर से हो गये है हम" | किसी और को वजह बताते रहे वो, उन वजहों को खुद में तलाशते रहे हम बातों ही बातों में उलझ गये हम वो लम्हे बिताते गये, उन्हें पल पल समझाते गये हम हमारे ग़मों में उलझना चाहते थे वो, उन्हें अपनी ख़ुशी की वजह बताकर सुलझाते रहे हम|| राते कटनी शुरू ही हुई थी कि घिरते बादलो के बीच समाते गये वो मद्धम मद्धम चमकते तारों के बीच चाँद से चेहरे को तलाशते रहे हम दिन बदल गये, लम्हे बिछड़ गये खुद के बदलाव पर सोचते रहे हम | वो मेरे बदलाव पर आज सवाल उठाते रहे उन्हें अपनी मगरुरियत की वजह बताए बगैर चुप रहे हम अब आज फिर उन्होंने कुछ कहा और सोचते रहे हम ||

कभी फुर्सत मिले तो पूछना खुद से ......

कभी फुर्सत से मिले तो पूछना खुद से रिश्तों का कोई पैमाना होता है क्या ? कभी खुद न पूछ सको तो, मिलना अपने दिल से सुनना उसके धड़कते धडकनों को और पूछना उनके धड़कने से किसी का अहसास होता है क्या? कभी दो पल की मोहलत हो तो सोचना खुद से उन बीते लम्हों के यादो में  तेरा मेरा आशियाना बना है क्या ? गर बात बनी तो बनी, न बनी तो कभी देखना अपने बंद नज़रों से और महसूस करना, किसी दूसरे बाग़ की खुश्बू है क्या मुझमे ? जरूरत पड़े तो पूछना कभी मुझसे तेरे अनगढे रिश्ते के उलझने से दिल परेशान है क्या ? कभी फुर्सत मिले तो पूछना कभी खुद से ......

सुलझे दिल में उलझी तुम

कुछ चीजे अनकही सी ही अच्छी लगती है, कुछ अनसुलझी सी अच्छी लगती है | कोशिशे तमाम कर लो उन्हें समझाने और सुलझाने की, लेकिन न चाहते हुए भी कुछ उलझी सी ही अच्छी लगती है | ख्वाब तो हजारों सजा लिए हमने तुम्हे देखते हुए, लेकिनअब नजरों से दूर, इन अहसासों में तुम्हारी मौजूदगी भी अच्छी लगती है | क्यों परवाह करें हम अपने चाहतों की, इन अनकही चाहतों पर तुम्हारी अनसुलझी मुस्कान ज्यादा अच्छी लगती है | हमें परवाह नही तेरे दूर या पास होने की फिर भी हमे जिन्दगी में तेरी आधी-अधूरी मौजूदगी अच्छी  लगती है | 

तुमसे अनकही दास्तान

लिखने की कोशिशें तमाम करता रहा तुझे  कभी शब्दों में बयां करने की कोशिश की तो कभी तेरे मेरे दरमियाँ छिपे अहसासों में  बिन मकसद के तमाम कोशिशे भी करता रहा, तुम्हे रिझाने की  कभी तुम्हारी छोटी-छोटी बातों को लिखा तो कभी तेरे- मेरे दरमियाँ बिन बातो के घटे अहसासों को लिखा  पास न होते हुए भी बिन देखे, तेरे अहसासों को कभी लिखा तो  कभी बंद नज़रों से देखे तेरे मुस्कान को लिखा लेकिन तेरे साथ बीते उन लम्हों को न लिख सका, जो छोटी सी होते हुए भी न जाने कितनी यादे छोड़ गयी | बस कोशिश करता रहा उन छोटे-छोटे बड़े लम्हों से एक बड़ी जिंदगानी लिखने की लेकिन तू मेरी जिंदगी से कही परे मेरे जज्बातों में लिपटी रही | शब्दों की बनावट में तुझसे अनकही वो सारी बाते छिपी रही, जो बिन कहे भी तुम समझती रही, कभी मेरे ख्वाबो में तो कभी जज्बातों में अब जब तुम बिन कहे मेरी उलझी हुई लिखावटों में सुलझी हुई खुद को देखती तो हरदफा तुझे लिखने को दिल चाहता है |

तुम एक ख्वाब

हाँ, एक ख्वाब हो तुम  जो बस चंद लम्हों से निकलकर, जिन्दगी की आग़ोश में सिमट चुकी हो  खुली आखों से देखी गयी वो हसीन सपना हो तुम  जिसे इस उलझी नींद में भी खुली आखों से साफ साफ देखने को जी चाहता है  बहुत ही करीब से इश्क है अपने सपनों से जिसे अक्सर मैं अपने खुली आखों से देखा करता लेकिन निकलना चाहता हूँ मैं अब इन सपनो से जिसमें इन ख्वाबो ने भी अपनी जगह बना ली है जो अब उन सपनों को भी हजार ख्वाब सजाने को मजबूर करते लेकिन वो शायद भूल चुके है कि वो एक ख्वाब है और ख्वाब अक्सर साथ होते हुए भी ख्वाब ही रहा करते जिन्हें महसूस करने की मनाही तो नही लेकिन अक्सर देखने की कोशिश में सपनें बन जाते |

तुम और तुम्हारे अनकहे सवाल

सोचता हूँ कभी, कैसे सुलझाऊ तेरे अनकहे सवालों को  क्या जवाब दूं तेरे उन तमाम अनसुने बातों का  जो अक्सर अकेले में तुम खुद से पूछा करती हो  वे सवाल जो अक्सर तुम्हारे उलझे चाहत तले बिखर जाया करते है | क्या जवाब दू, तेरे मुस्कान तले छिपे मायूस और धुंधली सी जज्बातों का  जो न चाहते हुए भी अक्सर तेरे नज़रों से बयां हुआ करती है तुम छिपाने की तमाम कोशिशें करती हो अपने जज्बातों को जो कभी दूसरों के ख्याल में तो कभी तुम्हारे खुद के बहकावे मे बिखर जाया करती है | तुम्हारे उन बिखरे जज्बातों में,वो सारे ख्याल, ख्वाब और अहसास दिखते है जो अक्सर खुद में तमाम सवाल बुनते हुए, इस अनमोल रिश्ते को खोने से डरते है | सोचता हूँ दो पल की ख़ुशी के लिए ही सही लेकिन कभी सुलझाऊं तेरे उन तमाम सवालों को जो अक्सर तुम अपनी नजरों से बयां कर, अपनी मुस्कराहट में समेट लिया करती हो | लेकिन अक्सर ये सोचते हुए अपनी ख्वाबों में खो जाया करता हूँ मैं जिसे सुलझाते हुए अक्सर तुम्हे उलझा सा लगता हूँ मैं ||

जब कभी तुम्हे देखता हूँ...

जब कभी भी तुम्हे देखता हूँ बस देखते रहना चाहता हूँ तुम्हे तुम किसी अनजान बाग़ की कली सी हो जिसे अपने बगिया में खिलते देखने की चाहत है लेकिन बेगानी खुश्बू में जीने का साहस भी नही है मुझमे|| तुम खिलती कली सी अक्सर सुबह सुबह की छटाओं में रंग बिखेरा करती उन रंगों में अक्सर अपने ख्वाबो की बगिया को देखा करता मैं दूर से देखी गयी तुम्हारी वो खिलती हँसी अक्सर याद आया करती जब कभी भी करीब से गुजरते हुए तुम्हारी एक मुस्कराहट को देखता मैं || कभी निकलना चाहता हूँ मैं तुम्हारे बिखरे जुल्फों के छाया से लेकिन एक बार फिर ढलते शाम की डर से, उनमें अपने जज्बातों को समेत लिया करता मैं || ढलते शाम में तेरी उन खुबसूरत नज़रों से अगली सुबह को देखना चाहता हूँ मैं जो दूर कहीं मेरे पहुँच से दूर ख्वाबों में दफ़न है अपनी गैरमौजूदगी में भी जब कभी तुम मेरे ख्वाबो में दिखा करती बस देखते रहना चाहता हूँ तुम्हे ||

बदलते ख्वाब और तुम ...

खुद से सिफारिश किये जा रहा हूँ कि खुद को रोक लो  तेरी फ़िक्र में बेवजह मचल रहे इस बावरे मन को सम्भाल रहा हूँ  और ये धडकता दिल कह रहा, दिल की जगह दिमाग को चलने से रोक लो  इन आँखों को लग रहा जैसे अर्से गुजर गये तुझे देखे हुए  अब जब मुस्कुराने की आदत हो गयी तुम्हे बंद आँखों से ख्वाबों में देखते हुए  तो मन कहता नज़रों के सामने देखने से खुद को रोक लो  कभी कभी मन कहता कभी लिखूं ,तुमसे अनकहे वो सारे शब्द  जो अक्सर लब्जों में बयाँ नही कर पाता मैं तुमसे  लेकिन इस सफेद रिश्ते पर लगते दाग का डर कहता  इसे रंगने से रोक लो दिल चाहता कि अपनी न सही तुम्हारी जिंदगी के कुछ ख्वाब सजाऊ  जो अक्सर तुम्हारे दो पल की ख़ुशी में बयाँ होती, जिससे तुम अनजान थी लेकिन इस अनदेखे ख़ुशी में मेरे ख्वाबों के उम्मीद कहते कि उसे ख्वाब बनने से रोक लो ||

किसी रोज तुम ...

तुम आसमां की उचाईयों में उड़े जा रही थी  नजरें तेरे दीदार को दिल की गहराइयों में डूबती रही | तुम बहती हवाओं में बाहें फैलाकर झूमे जा रही थी  मन तेरे खिलते मुस्कान को देखकर मचलता रहा | तुम बहती नदी की कलकलाहट सी बोली जा रही थी  दिल तेरी धडकनों को सुनने की कोशिश करता रहा | तुम अँधेरी रातों में चाँद की तरह चमकती रही थी कोई जमीं पर खड़ा तुझे ख्वाब सा समझता रहा ....||

याद होगा तुम्हे

याद है तुम्हे ... जानबूझकर मेरा उस अनजानी सी गली से गुजरना  फिर तेरे नजरों के सामने होते हुए, तेरा मुझसे न मिलना | तेरे शहर में बिन बताए मेरी दस्तक पर तेरा नाराज होना  फिर मंजिल से बेखबर, खुद की गलियों में तेरा मुझसे मिलना | अपने शहर से दूर बेगानी गलियों में देर शाम अपने शहर के परिंदे का दिखना फिर अगली सुबह तक मिलने की जुस्तजू में खुद में भटकना ...||

थोड़े दूर बेहद करीब से ...

आज गुजरे हो तुम बेहद करीब से  शांत क़दमों के कुछ फासलों पर,बेचैन दिल के करीब से  आज गुजरे हो तुम | तुझे आना ही न था आज इस बेचैन दिल के गलियों में  किसी और के जश्ने शरीक में, मेरे नज़रों के करीब से  आज गुजरे हो तुम || तुम कुछ यूं मुस्कुराते निकले मिलने किसी दिल-ए-अजीज से इस खिलती मुस्कान में उलझे बगैर, मन रोकना चाहता खुद को अपने धड़कन को सम्भाले बगैर तेरे दिल के करीब से क्युकी आज गुजरे हो तुम कुछ दूर बेहद करीब से ||

बिखरी_हुई_तुम

मैं तुझे किसी किताब के पन्नों में सिमेटने के बजाय हवाओं में बिखरे उन अनगिनत पन्नों में चाहता हूँ... जिसके आखिरी पन्ने की तलाश में, मैं हर पल उन कोरे पन्ने को समेटता रहू... जिसपर हमारे वो तमाम दस्तावेज उभरे हो जो कभी लिखे ही नही गये |