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Showing posts from February, 2019

पुलवामा

तुम करो तमाशा, मैं देख रहा हर नारेबाज़ी समझ रहा तुम खुली आसमां में चिल्ला रहे हो मैं इस बन्द तख़्त में सिमट रहा बैनर, पोस्टर और मोमबत्तियों से मुझकों तुम भुना रहे, सोशल मीडिया और गालियों से क्रांति तुम फैला रहे अरे ठहर ज़रा, बस शांत बैठ तू एक क़दम बढ़ा तू उस घर पे जहाँ एक बूढ़ा बैठा ठिठक रहा बेटा माँ से लिपट रहा उस बूढ़ी माँ के आँसू पोछो कुछ करना है तो उसे गले लगा मुझ जैसे और लाखों थे जो भारत माँ की बलि चढ़े क्या बदलेगा तू इन सब से धर्म, जाति या अपना खुदा कुछ तो अपनी अक़्ल लगा तू देख अब भी मेरी चिता पर कोई अपनी रोटी सेक रहा ।। #पुलवामा_शहीद   #नमन Arun kr jaiswal

इश्क़ ए लफ्फाज़ी (भाग 6)

यूं तो सफ़र एक शहर से दूसरे शहर चलता रहा, मौसम बदलता रहा, बदलते मौसम के साथ नए लोग मिलते गए , लोगो के साथ मिज़ाज़ बदलता गया, इस बदले मिज़ाज़ में अल्फ़ाज़ भी जुड़ते गए। अल्फ़ाज़ यूं ही नही जुड़े, इन एहसासों की एक लंबी कतार थी, वही कतार जिनमें उनकी चाहत पर फिसलने वालो की कमी न थी, और हम उनमें कहीं खड़े होने भर की जगह तलाश रहे थे । जगह बनाने की जद्दोजहद में समय बीतता गया, अपने अल्फ़ाज़ के साथ साथ एहसास भी गहराते गए और वो हौले हौले ही सही पर कुछ करीब आने लगे । हवा के झोंके सा कुछ ही पल में उनका बुखार सर चढ़ गया, और प्रेम की बारिश लिए मौसम बदला और ठंड में उनके एहसासों की गर्माहट लिए सफर माह ए मोहब्बत क पहुँच चुका था। यह मोहब्बत का महीना यूं तो सबके लिए बेहद ख़ास रहा, सबको अपनी अपनी मोहब्बत जताने की जैसे रेस लगी थी, वैसे देखा जाय तो मोहब्बत के लिए किसी खास दिन, समय या महीने का होना बिल्कुल आवश्यक नही लेकिन जो नए नए मोहब्बत का बुखार जो होता, कहाँ अब इस वैलेंटाइन वीक के गोली के बिना सही होने वाली होती । अब इस वैलेंटाइन वीक के भी कुछ छः सात वार थे, जिनमे टेडी डे, चॉकलेट डे, रोज़ डे सहित प्रोपोज़ल डे भी खास थे