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Showing posts from 2018

एक लड़का

लिखना है कुछ तो लिखो हर बात बोल कर बताई नही जाती छवि तुम्हारी कुछ यूं बिखरी है इन समझदारों के समंदर में कि तुम आह भी भरो तो लोग समझेंगे जरूर कोई दर्द या तन्हाई है करो कोशिश तुम उन्हें जानने की पल भर के लिए भी उन्हें पहचानने की तुम पकड़े जाते हो किसी के जहनों जहां में एक शिकारी की तरह, एक बलात्कारी की तरह ये छवि है एक जमात की जिसकी तुम पैदाईस हो बचो तुम, समझो तुम लिखो अपनी कहानी को कुछ इस तरह कि जब तुम बात करो अपने मन की इज़हार भी करो अपने दिल की... हर लड़की समझे तुम्हारी जुबानी को न मजबूर हो खुद को समझाने को #एक_लड़का

उस चेहरे की सिकन को देखो ...

उस चेहरे की सिकन को देखो जब वह कुछ अनजानों के भीड़ के बीच छिपा हो देखो उसके अंदर की बेचैनी को जब वह कुछ कदम दूर रखें हुए भी टकटकी लगाए निहार रहा एक कोने को कुछ खटपट सी क्या हुई आँखों के साथ साथ सहारा लिए हाथ भी बेसहारा हो बढ़ाते है अपने कदम अपने जिगर को बचाने किसी गैर नजर से देखो गौर से उस चेहरे को इस दौड़ती ट्रेन, भरी भीड़ में लोगो के भागती नजरों के बीच एक पिता खड़ा है, अपनी बेटी से कुछ ही कदम दूर शायद इस सफर को मजबूर .... #सफ़र_में

तुम अकेले हो

एक भीड़ है जिसमें हर पल तुम अकेले हो जब जब सोचो तुम अपने मन की सब पृथक पृथक सा लगता है जब घुल मिल जाओ उस भरी भीड़ में सब बिखरा बिखरा लगता है हर किसी की जब नज़र पड़े तुमपर हर एक निगाह में तुम बहुतेरे हो पर जब कोई खुद से ढूंढे खुद को हर भीड़ में बस तुम अकेले हो भीड़ बढ़ी है पर नजर झुकी है तुम अपनी नजर उठा कर देखो अलग अलग चेहरों में लिपटी यह बेगानों की बस्ती है तुम उस चलती फिरती भीड़ में हो शायद इसलिए तुम अकेले हो टूट पड़ो तुम बिखर पड़ो उस भरी भीड़ से इतर चलो कण कण से राह बनाने को तय करो तुम खुद की मंजिल जब कभी तुम अकेले हो जब मंजिल होगी रास्ता होगा फर्क क्या पड़ता कि तुम अकेले हो कुछ ऐसा कर गुजरो सपना सबका हो, मंजिल अपना हो और उसे पाने वाले उस भीड़ में तुम अकेले हो ।

सपनों की एक कतार सी है ....

सपनों की एक कतार सी है छोटी सी दिखने वाली सपनों की दुनिया है वो बड़ी मिलने भर से राह न हुई पूरी ठीक सामने खड़ी है एक और मंजिल।। मंजिल के बाद है एक और मंजिल हर मंजिल की एक साजिश है हर कोई कहता बस आखिरी बार इसे पाने की ख़्वाहिश है ख्वाहिशों की इस आखिरी सी कतार में अब वो सपनों की मंजिल कहीं पीछे खड़ी है ।। राह बढ़ती जा रही अपने सपनों की दुनिया बसती जा रही अब यह दुनिया वीरान पड़ी है अपनों के बीच ही बेगानों सी पहचान पड़ी है अभी भी सपनों की एक कतार सी है ।।

तू चल रहा राही ...

चल रहा, तू चलता जा एक राही बन तू बढ़ता जा इन गिरते पड़ते कदमों से कुछ कदम कदम ही बढ़ता जा उस मंजिल की दिशा लिए तू एक रेख पर बढ़ता जा कदम कदम पर रोड़ा है तू समय समय पर लड़ता जा संघर्षो से इस बिछे सफर में उम्मीदों की एक राह पड़ी है इस राह का तू राही बन खुद अपनी तकदीर लिखता जा तू चल रहा राही बस चलता जा ....

ऐ ज़िंदगी तू आज़मा मुझे

रूबरू कराऊंगा कभी तुझसे तुझ को बदल दूंगा तेरे सारे तौर तरीकों को आज बदल रहा हर पल दो पल तू बदलने दे बस इस समय की करवट को अपने हुनर तले लहरों सा बहा ले जाऊंगा तुझे आज तू घुमा रहा दर बदर मुझे एक रोज अपने सपनो के जंजाल में फिर उलझाऊंगा तुझे आज तू बंधाओ की डोर सी दो सिरो पर बहा रहा मुझे एक रोज तुझे ही बाँधकर अपने सपनों की राह बनाऊंगा मैं #ऐ_ज़िन्दगी तू और आज़मा मुझे

इश्क़-ए-लफ्फाज़ी (भाग- 5)

प्यार में धोका खाने के बाद या प्यार में असफलता हाथ लगने के बाद उदास नही होना है। जितनी बेहयाई प्यार को पाने के लिये दिखाई है न उससे थोड़ा कम बेहया भी बन गये तो भी ज़िन्दगी मजे में कटेगी। हाँ! माना कि दुःख होता है! नींद गायब हो जाती है! कुछ खाने पीने का मन नही करता लेकिन इसका मतलब ये नही की तुम दुनियॉ भूल कर देवदास बने बैठ जाओ ससुर। अरे ये भी हो सकता है कि तुम्हें कोई अपने सोलह सोमवार वाले ब्रत में माँग रहा हो और उस व्रत की ताकत तुम्हारे इस प्यार को पाने की कोशिशों से कही ज्यादा हो। बेशक़ पियो दारू और सिगरेट। तुम्हारी ज़िन्दगी है! तुम्हे ही भोगना है ससुर..कौन रोक सकता है भला। पर लड़की के गम से उबरने के नाटक में ये सब मत किया करो। भाई दारू के बहाने किसी और को या खुद को बदनाम क्यों करना। कोई जरूरत नही किसी ज़ोया के प्यार में कुन्दन बनने की! खून थूक के मरने की। पहचानो यार किसी बिंदिया को जो तुमसे प्यार करती है, जो तुमपे अपना सब कुछ हार सकती है और करो प्यार उससे। यहाँ कोई किसी को नही रोकता। खून थूक कर मर भी गये तो भी ज़ोया आवाज़ नही लगाने वाली। आख़िरकार सब कुछ पाना ही तो जिंदगी नही है ना! अरे

इश्क़-ए-लफ्फाज़ी (भाग-4)

ठण्ड हो चला है यह मौसम भी, इस प्यार के महीने में, ठीक वैसे ही जैसे मेरा प्यार ठंडा पड़ता गया तुझे बदलते देख | या यूं कह लें कि तेरे एहसासों और मुस्कराहटों का रूख बदलते देख | जब अधिकतर बड़े शहरों की तरह अपने इस छोटे से कस्बें में भी साथी युवाओं के सर वेलेंटाइन का भूत सवार है तो अन्दर ठण्ड पड़ी मोहब्बत भी कभी कभी हिलोर ले उठती है | कभी तुम्हारे खिलखिलाते चेहरे की याद दिलाती तो कभी तुम्हारे उन तमाम बचकानी हरकतों और नादानियों की | ऐसे तमाम पल रहे मेरे तुम्हारे दरमियाँ जिसे जीने या महसूस करने के लिए किसी खास दिन की जरूरत नही महसूस हुई | बस वे सारे लम्हें मेरे तुम्हारे यादों में किसी न किसी रूप में जुड़ते चले गये | अपने इश्क़ के इज़हार के लिए किसी खास दिन की जरूरत नही होती | अगर इश्क है तो हर पल खास और यादगार हो सकता | इश्क़ होनी चाहिए उन तमाम छोटे छोटे लम्हों से जो आपके या आपके साथी के चेहरे पर मुस्कान लाये, इश्क होनी चाहिए अपने उन तमाम एहसासों से जो आपको बिना सोचे समझे किसी को खास महसूस कराने और मोहब्बत जाहिर करने के लिए कुछ भी करने को मजबूर करने को मजबूर कर दे | इश्क़ होना चाहिए कुछ ऐ

इश्क़-ए-लफ्फाज़ी (भाग-3)

आज तुम पहले से ज्यादा कड़क सी महसूस हो रही थी | तुझसे मेरा ताल्लुक हो या न हो, पर तेरी ही तरह जलती हुई इस आदत से जरुर है | तुम बिन रहा भी न जाता और न ही हमेशा साथ रहा जा पा रहा है, पर जैसे ही नजरों के सामने आती, तुझे अपने लबों से लगाने का दिल जरुर चाहता | तुम दोनों में गजब की समानता है, दोनों ही गजब की मीठी और जहरीली हो | बशर्ते अंतर इतना है कि एक से इतनी मोहब्बत की जब चाहा अपने लबों से लगा लिया और अब दूसरे को बस तस्वीरों में देख नज़रों से दिल तक उतारना होता | वैसे तो दोनों चचेरी बहनों की तरह समझ आती हो, लेकिन मेरी नजर से किसी सौतन से कम नही लगती | क्योंकि जब कभी भी किसी एक के करीब आओं तो ठीक उसी तरह एक दूसरे की याद दिलाती जैसे एक सौतन दूसरे की, कभी तानों के बहाने तो कभी शिकायतों के बहाने | ये बात अलग तुम दोनों कभी अपनी मिठास तो कभी जलाकर एक दूसरे की याद दिलाती | पहली तुम (मेरा इश्क़) और दूसरी चाय | दोनों का ही लत कुछ यूं हैं कि एक पल में या तो सर दर्द उतार दें या पूरी ज़िन्दगी का दर्द आपके जीवन में उड़ेल दें | दोनों इस गुजर-बसर करती जिंदगी के अनमोल भाग है | आदत कह लें या नशा, जब कभी

इश्क़-ए-लफ्फाज़ी (भाग-2)

इश्क़ में उम्मीद का होना लाजमी है, लेकिन अक्सर उम्मीदें रिश्तें को मार देती है | क्योकिं अक्सर हम किसी से प्यार करते है तो यह महसूस कराने के लिए,हम सामने वाले के लिए कुछ करने की कोशिश करते है, और इस कोशिश में हम कभी भी अकेले नही होते, किसी न किसी रूप में सामने वाला भी उससे जुड़ जाता है, जिसे क्रियान्वावित करने के लिए सामने वाले का भी शामिल होना जरूरी हो जाता है और हमें उससे उम्मीदे होने लगती हैं |अपने इश्क़ को साबित करने के लिए, सामने वाले को महसूस कराने के लिए हम हमेशा सब कुछ सही दिशा में ही ले जाने की कोशिश करते लेकिन जब अपने जज्बातों तले हम अपने प्रेम में खुद को भूलकर पूरा ध्यान सामने वाले पर केन्द्रित करने लगते हैं तो हमारा प्रेम कहीं न कहीं नकारात्मक दिशा में जाने लगता है | क्योकि तब हमारे प्रेम के होने और करने का अंतर आ जाता है | क्योकिं प्रेम महसूस करने की चीज हैं न कि करने से किया जा सकता है | यदि हमें किसी से प्रेम हैं और उसे भी आपसे प्रेम हैं तो उनमें भी कहीं न कहीं किसी मुकाम पर बहस जरुर हो जाती है, और अक्सर उन झगड़ो और बहस का कारण उम्मीद ही होता है | इसलिए हमें कभी कभी लग

इश्क़-ए-लफ्फाज़ी (भाग-1)

अनेक कविताओं और कहानियों का संस्मरण करते हुए, आज यह धडकता दिल बहुत परेशान था | शायद कुछ कहना चाहता था, या खुद को समझाना चाहता था | दरअसल यह बेचैनी किसी चीज की नही थी बल्कि उसे, उसमें समाहित प्रेम ने विचलित कर रखा था | प्रेम कभी भी किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान या खुद से हो सकता है | प्रेम हमारे जीवन की स्वाभाविक प्रक्रिया है | जब आप किसी के साथ प्रेम में होते हैं तो यह आपके जीवन के सबसे ख़ूबसूरत लम्हों और एहसासों में से एक होता या यूं कह लें कि इसका स्थान सर्वोच्च होता है | यदि प्रेम का ताल्लुक किसी व्यक्ति विशेष से हो तो इसका तात्पर्य यह बिलकुल नही कि उसे हासिल किया जाय | उस व्यक्ति से आपके दिल से लगाव और उसके प्रति अटूट विश्वास व गहनता ही प्रेम का प्रतीक है | जब आप उसके छोटे-छोटे लम्हों में खुश होना सीख जाते है, उसके साथ कुछ पल बिताने व अपने नज़रों के सामने देखने भर से अन्दर ही अन्दर प्रफुल्लित होते है, सुकून महसूस करते हैं | यही प्रेम को जीने और महसूस करने का दौर होता है | जब आपको उस व्यक्ति से लगाव हो जाता है तो आप उसकी देखभाल व उसके प्रति अपने एहसासों व भावनाओं

कुछ ऐसा ही लिखना चाहता हूँ मैं

लिखना चाहता हूँ आज कुछ ऐसा जिससे बयाँ कर सकू अपने लब्जों को जिनमें बसी है, लाखों ऐसी अनकही बातें जिनसे तू अब भी रूबरू नही है || कुछ शब्दों में समेटकर बिखेरना चाहता हूँ अपने उन तमाम जज्बातों को जो अक्सर तुम्हारे सामने बयाँ होते हुए भी सिमटे से लगते है || कुछ न बोलते हुए भी बताना चाहता हूँ अपने उन तमाम ख्यालातों व ख्वाबो को जो अक्सर तेरे बिन कुछ यादों भर के लिए बुना करता मैं || तुम्हारी बातों पर रूठना नही, मनाना चाहता हूँ तुम्हे उन तमाम बातों और बुने सपनों के लिए जिससे तेरे चेहरे पर एक चाँद सी मुस्कान बिखरती है जो कुछ पल के लिए ही सही, मेरे दिल को एक सुकून देती है || तुम्हे रोकना नही, उड़ते देखना चाहता हूँ तुम्हे तुम्हारी ही दुनिया में उड़ते देख अपनी दुनिया के नज़रों में बसाना चाहता हूँ मैं तुम पास रहो या दूर, बस तेरे दिल को दिल से अपनाना चाहता हूँ मैं || मेरी ख्वाहिशों के कुछ पल पास हुई तुम अपनी एहसासों को लिए मेरे साथ हुई तुम शायद मेरी नजदीकियां रास न आई तुम्हे जो तेरे पास होने न होने भर से बदलती नही अब तेरे ही लिए तुझसे दूर, तुझे अपने एहसासों में अपने साथ ल

मोहब्बत ! जो एक मुद्दत से है बड़ी खास...

किसी से लम्हा दर लम्हा मिलने की उम्मीद सुबह की पहली धूप के बाद् शाम की आखिरी किरण के पहले किसी को देखने की चाहत, कुछ पल में ही तमाम अनसुलझे बातों के बाद अगले ही पल उनसे बिछड़ने से पहले अपने लब्ज पर रुकी हुई कोई बात, यूं ही नही है, उनसे मोहब्बत है || घंटो बैठ, बाँहों में बाहें डाल साथ होना जरूरत पड़ने पर बस दो पल साथ हो जाना बिना बात के घंटो बातों का होना उनकी हर गलती को बस हस कर टाल देना तमाम उलझे बातों को बस दो पल की ख़ुशी के लिए मान लेना मोहब्बत नही है || साथ हो न हो, पास हों न हो मीलों दूर होकर, दिल के करीब महसूस होना बंद आँखों से भी उन्हें करीब महसूस करना उनकी छोटी छोटी नादानियों को याद कर खुद का खिलखिला उठना गलती को गलती बताने पर उनका रूठना उनके रूठने पर खुद का मनाना बिन वजह हर पल दिलों-दिमाग में उनकी बातों का होना उनको देखने भर से इस मचलते दिल का खुश होना अपनी न होते हुए भी उनको अन्दर ही अन्दर अपनाना मोहब्बत है || दूर हो या पास, बेगानी हो या खास अपने हिस्से की वो दिन हो या रात किसी और के नजरों के सामने होकर जब है अपने दिल के पास दुनिया खुश है या नार