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Showing posts from January, 2018

इश्क़-ए-लफ्फाज़ी (भाग-3)

आज तुम पहले से ज्यादा कड़क सी महसूस हो रही थी | तुझसे मेरा ताल्लुक हो या न हो, पर तेरी ही तरह जलती हुई इस आदत से जरुर है | तुम बिन रहा भी न जाता और न ही हमेशा साथ रहा जा पा रहा है, पर जैसे ही नजरों के सामने आती, तुझे अपने लबों से लगाने का दिल जरुर चाहता | तुम दोनों में गजब की समानता है, दोनों ही गजब की मीठी और जहरीली हो | बशर्ते अंतर इतना है कि एक से इतनी मोहब्बत की जब चाहा अपने लबों से लगा लिया और अब दूसरे को बस तस्वीरों में देख नज़रों से दिल तक उतारना होता | वैसे तो दोनों चचेरी बहनों की तरह समझ आती हो, लेकिन मेरी नजर से किसी सौतन से कम नही लगती | क्योंकि जब कभी भी किसी एक के करीब आओं तो ठीक उसी तरह एक दूसरे की याद दिलाती जैसे एक सौतन दूसरे की, कभी तानों के बहाने तो कभी शिकायतों के बहाने | ये बात अलग तुम दोनों कभी अपनी मिठास तो कभी जलाकर एक दूसरे की याद दिलाती | पहली तुम (मेरा इश्क़) और दूसरी चाय | दोनों का ही लत कुछ यूं हैं कि एक पल में या तो सर दर्द उतार दें या पूरी ज़िन्दगी का दर्द आपके जीवन में उड़ेल दें | दोनों इस गुजर-बसर करती जिंदगी के अनमोल भाग है | आदत कह लें या नशा, जब कभी

इश्क़-ए-लफ्फाज़ी (भाग-2)

इश्क़ में उम्मीद का होना लाजमी है, लेकिन अक्सर उम्मीदें रिश्तें को मार देती है | क्योकिं अक्सर हम किसी से प्यार करते है तो यह महसूस कराने के लिए,हम सामने वाले के लिए कुछ करने की कोशिश करते है, और इस कोशिश में हम कभी भी अकेले नही होते, किसी न किसी रूप में सामने वाला भी उससे जुड़ जाता है, जिसे क्रियान्वावित करने के लिए सामने वाले का भी शामिल होना जरूरी हो जाता है और हमें उससे उम्मीदे होने लगती हैं |अपने इश्क़ को साबित करने के लिए, सामने वाले को महसूस कराने के लिए हम हमेशा सब कुछ सही दिशा में ही ले जाने की कोशिश करते लेकिन जब अपने जज्बातों तले हम अपने प्रेम में खुद को भूलकर पूरा ध्यान सामने वाले पर केन्द्रित करने लगते हैं तो हमारा प्रेम कहीं न कहीं नकारात्मक दिशा में जाने लगता है | क्योकि तब हमारे प्रेम के होने और करने का अंतर आ जाता है | क्योकिं प्रेम महसूस करने की चीज हैं न कि करने से किया जा सकता है | यदि हमें किसी से प्रेम हैं और उसे भी आपसे प्रेम हैं तो उनमें भी कहीं न कहीं किसी मुकाम पर बहस जरुर हो जाती है, और अक्सर उन झगड़ो और बहस का कारण उम्मीद ही होता है | इसलिए हमें कभी कभी लग

इश्क़-ए-लफ्फाज़ी (भाग-1)

अनेक कविताओं और कहानियों का संस्मरण करते हुए, आज यह धडकता दिल बहुत परेशान था | शायद कुछ कहना चाहता था, या खुद को समझाना चाहता था | दरअसल यह बेचैनी किसी चीज की नही थी बल्कि उसे, उसमें समाहित प्रेम ने विचलित कर रखा था | प्रेम कभी भी किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान या खुद से हो सकता है | प्रेम हमारे जीवन की स्वाभाविक प्रक्रिया है | जब आप किसी के साथ प्रेम में होते हैं तो यह आपके जीवन के सबसे ख़ूबसूरत लम्हों और एहसासों में से एक होता या यूं कह लें कि इसका स्थान सर्वोच्च होता है | यदि प्रेम का ताल्लुक किसी व्यक्ति विशेष से हो तो इसका तात्पर्य यह बिलकुल नही कि उसे हासिल किया जाय | उस व्यक्ति से आपके दिल से लगाव और उसके प्रति अटूट विश्वास व गहनता ही प्रेम का प्रतीक है | जब आप उसके छोटे-छोटे लम्हों में खुश होना सीख जाते है, उसके साथ कुछ पल बिताने व अपने नज़रों के सामने देखने भर से अन्दर ही अन्दर प्रफुल्लित होते है, सुकून महसूस करते हैं | यही प्रेम को जीने और महसूस करने का दौर होता है | जब आपको उस व्यक्ति से लगाव हो जाता है तो आप उसकी देखभाल व उसके प्रति अपने एहसासों व भावनाओं

कुछ ऐसा ही लिखना चाहता हूँ मैं

लिखना चाहता हूँ आज कुछ ऐसा जिससे बयाँ कर सकू अपने लब्जों को जिनमें बसी है, लाखों ऐसी अनकही बातें जिनसे तू अब भी रूबरू नही है || कुछ शब्दों में समेटकर बिखेरना चाहता हूँ अपने उन तमाम जज्बातों को जो अक्सर तुम्हारे सामने बयाँ होते हुए भी सिमटे से लगते है || कुछ न बोलते हुए भी बताना चाहता हूँ अपने उन तमाम ख्यालातों व ख्वाबो को जो अक्सर तेरे बिन कुछ यादों भर के लिए बुना करता मैं || तुम्हारी बातों पर रूठना नही, मनाना चाहता हूँ तुम्हे उन तमाम बातों और बुने सपनों के लिए जिससे तेरे चेहरे पर एक चाँद सी मुस्कान बिखरती है जो कुछ पल के लिए ही सही, मेरे दिल को एक सुकून देती है || तुम्हे रोकना नही, उड़ते देखना चाहता हूँ तुम्हे तुम्हारी ही दुनिया में उड़ते देख अपनी दुनिया के नज़रों में बसाना चाहता हूँ मैं तुम पास रहो या दूर, बस तेरे दिल को दिल से अपनाना चाहता हूँ मैं || मेरी ख्वाहिशों के कुछ पल पास हुई तुम अपनी एहसासों को लिए मेरे साथ हुई तुम शायद मेरी नजदीकियां रास न आई तुम्हे जो तेरे पास होने न होने भर से बदलती नही अब तेरे ही लिए तुझसे दूर, तुझे अपने एहसासों में अपने साथ ल

मोहब्बत ! जो एक मुद्दत से है बड़ी खास...

किसी से लम्हा दर लम्हा मिलने की उम्मीद सुबह की पहली धूप के बाद् शाम की आखिरी किरण के पहले किसी को देखने की चाहत, कुछ पल में ही तमाम अनसुलझे बातों के बाद अगले ही पल उनसे बिछड़ने से पहले अपने लब्ज पर रुकी हुई कोई बात, यूं ही नही है, उनसे मोहब्बत है || घंटो बैठ, बाँहों में बाहें डाल साथ होना जरूरत पड़ने पर बस दो पल साथ हो जाना बिना बात के घंटो बातों का होना उनकी हर गलती को बस हस कर टाल देना तमाम उलझे बातों को बस दो पल की ख़ुशी के लिए मान लेना मोहब्बत नही है || साथ हो न हो, पास हों न हो मीलों दूर होकर, दिल के करीब महसूस होना बंद आँखों से भी उन्हें करीब महसूस करना उनकी छोटी छोटी नादानियों को याद कर खुद का खिलखिला उठना गलती को गलती बताने पर उनका रूठना उनके रूठने पर खुद का मनाना बिन वजह हर पल दिलों-दिमाग में उनकी बातों का होना उनको देखने भर से इस मचलते दिल का खुश होना अपनी न होते हुए भी उनको अन्दर ही अन्दर अपनाना मोहब्बत है || दूर हो या पास, बेगानी हो या खास अपने हिस्से की वो दिन हो या रात किसी और के नजरों के सामने होकर जब है अपने दिल के पास दुनिया खुश है या नार