सोचता हूँ कभी, कैसे सुलझाऊ तेरे अनकहे सवालों को
क्या जवाब दूं तेरे उन तमाम अनसुने बातों का
जो अक्सर अकेले में तुम खुद से पूछा करती हो
वे सवाल जो अक्सर तुम्हारे उलझे चाहत तले बिखर जाया करते है |
क्या जवाब दू, तेरे मुस्कान तले छिपे मायूस और धुंधली सी जज्बातों का
जो न चाहते हुए भी अक्सर तेरे नज़रों से बयां हुआ करती है
तुम छिपाने की तमाम कोशिशें करती हो अपने जज्बातों को
जो कभी दूसरों के ख्याल में तो कभी तुम्हारे खुद के बहकावे मे बिखर जाया करती है |
तुम्हारे उन बिखरे जज्बातों में,वो सारे ख्याल, ख्वाब और अहसास दिखते है
जो अक्सर खुद में तमाम सवाल बुनते हुए, इस अनमोल रिश्ते को खोने से डरते है |
सोचता हूँ दो पल की ख़ुशी के लिए ही सही लेकिन कभी सुलझाऊं तेरे उन तमाम सवालों को
जो अक्सर तुम अपनी नजरों से बयां कर, अपनी मुस्कराहट में समेट लिया करती हो |
लेकिन अक्सर ये सोचते हुए अपनी ख्वाबों में खो जाया करता हूँ मैं
जिसे सुलझाते हुए अक्सर तुम्हे उलझा सा लगता हूँ मैं ||

क्या जवाब दूं तेरे उन तमाम अनसुने बातों का
जो अक्सर अकेले में तुम खुद से पूछा करती हो
वे सवाल जो अक्सर तुम्हारे उलझे चाहत तले बिखर जाया करते है |
जो न चाहते हुए भी अक्सर तेरे नज़रों से बयां हुआ करती है
तुम छिपाने की तमाम कोशिशें करती हो अपने जज्बातों को
जो कभी दूसरों के ख्याल में तो कभी तुम्हारे खुद के बहकावे मे बिखर जाया करती है |
तुम्हारे उन बिखरे जज्बातों में,वो सारे ख्याल, ख्वाब और अहसास दिखते है
जो अक्सर खुद में तमाम सवाल बुनते हुए, इस अनमोल रिश्ते को खोने से डरते है |
सोचता हूँ दो पल की ख़ुशी के लिए ही सही लेकिन कभी सुलझाऊं तेरे उन तमाम सवालों को
जो अक्सर तुम अपनी नजरों से बयां कर, अपनी मुस्कराहट में समेट लिया करती हो |
लेकिन अक्सर ये सोचते हुए अपनी ख्वाबों में खो जाया करता हूँ मैं
जिसे सुलझाते हुए अक्सर तुम्हे उलझा सा लगता हूँ मैं ||

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