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Showing posts from 2021

तोरण की परंपरा

शादियों में तोरण... हाल ही में मालवा के एक गाँव में शादी में जाना हुआ, जहाँ "तोरण" परंपरा से रूबरू हुआ । यह परंपरा मेरे लिए नया था क्योंकि इससे पहले मैंने ऐसा कुछ नही देखा था । हो सकता है कि राजपूतों की शादियों में इस परंपरा का निर्वहन किया जाता हो, लेकिन राजस्थान व मालवा क्षेत्र में इसका विशेष प्रभाव है ।  हमारे देश में तोरण बांधने की परम्परा सदियों पुरानी है, घर के मुख्य द्वार को तोरण द्वार भी कहा जाता है। शादियों में दूल्हा तोरण मारकर अंदर जाता है। जिस तोरण को मारा जाता है वो लकडी का बना होता है और उस पर तोता (तोता पक्षी) का सांकेतिक चित्र ऊकेरा जाता है । प्राचीन दंत की कथा अनुसार, तोरण नाम का एक राक्षस था, जो शादी के समय दुल्हन के घर के द्वार पर तोते का रूप धारण कर बैठ जाता था।जब दूल्हा द्वार पर आता तो वह उसके शरीर में प्रवेश कर दुल्हन से स्वयं शादी रचाकर उसे परेशान करता था। एक बार एक साहसी और चतुर राजकुमार की शादी के वक्त जब दुल्हन के घर में प्रवेश कर रहा था अचानक उसकी नजर उस राक्षसी तोते पर पड़ी और उसने तुरंत तलवार से उसे मार गिराया और शादी संपन्न की। बताया जाता है कि उ

आईशोलेसन

अब ये घर अखर रहा है मुझे अंदर ही अंदर बदल रहा है इसकी दीवारें अब जैसे अनंत सी लगती है सीढियां एक खाई सी खिड़कियां कुछ उम्मीदों की रौशनी लेकर आती है ये बिस्तर एक सहारे सा टिका पड़ा है बेचैन व कैद सा पड़ा हूँ मैं जिसपर सुकून हुआ करता था जहाँ हर पल वो पल भी जैसे बिखर रहा है मैं रातों में करवटे बदल रहा दिन के उजाले में खुद को व्यतीत होते देख रहा आपाधापी में व सपनों की उड़ान लिए कही दूर निकल आया हूँ आज मंजिल के राह पर अकेले बैठा हूँ  अब गांव का घर याद कर रहा हूँ यहाँ समय कट रहा पर ये बंद घर जैसे मुझे काटने को दौड़ रहा दरवाज़े के बाहर कुछ इंसान भी है जिनके लिए अब अछूत सा हूँ मैं आज हालात मेरे बदले है पर स्वभाव व व्यवहार उनका बदल रहा।। #आईशोलेसन

बदलते केवल शहर नही...

बदलतें केवल शहर नही इसके साथ बदलते हैं कई साथ छूट जाते है कई साथी, दोस्त व यार छूटते तो कई अजीज भी है बस बदलतें नही उन रिश्तों के एहसास सपनों की राह बहुत लंबी होती है थोड़ी मुश्किल भी होती है पर राहगीर बस मंजिल को तकता है  कभी विचलित न होता डिगता नही बदलता भी नही कभी अपने एहससात पर छोड़ आता है अपना घर, द्वार और माँ-बाप। रास्तें अब भी वही है तुम मंजिल पर खड़े हो आगे निकल चले हो बेशक़! शहर बदलो, उचाईयों पर उड़ो अपने मंजिल को बढो बस कभी पलट कर जरूर देखो तुम्हारे कुछ अपने भी है जो किसी शहर में कर रहे तुम्हारा इंतज़ार।

कुछ यादें हैं

सुनो न! मैं पूरा सा नही हो पा रहा हूँ कुछ समेटने की कोशिश कर रहा हूँ पर खुद को बिखरा सा महसूस कर रहा हूँ मुझमें जिद्द न थी तुझे पाने की पर कुछ तो छूट सा गया है न जाने किस अन्जाने तलाश में आगे निकल चला हूँ दरसअल, याद आ रहा है वो सब कुछ जो बदल सा गया है तुम, तुम्हारा साथ और एहसास सब याद आ रहा है एक साया सा है मेरे साथ जिससे मैं ख़ुद को जुदा कर रहा हूँ भूल जाऊ, ऐसी कोशिश है मेरी पर भूलकर जैसे खुद अधूरा सा लग रहा हूँ।। #ख़्वाब #मेरे_सपने

आहिस्ता आहिस्ता एक दौर गुज़र गया

सुनो न! मैं पूरा सा नही हो पा रहा हूँ कुछ समेटने की कोशिश कर रहा हूँ पर खुद को बिखरा सा महसूस कर रहा हूँ मुझमें जिद्द न थी तुझे पाने की पर कुछ तो छूट सा गया है न जाने किस अन्जाने तलाश में आगे निकल चला हूँ दरसअल, याद आ रहा है वो सब कुछ जो बदल सा गया है तुम, तुम्हारा साथ और एहसास सब याद आ रहा है एक साया सा है मेरे साथ जिससे मैं ख़ुद को जुदा कर रहा हूँ भूल जाऊ, ऐसी कोशिश है मेरी पर भूलकर जैसे खुद अधूरा सा लग रहा हूँ।। #ख़्वाब #मेरे_सपने

जब तुम मुझे मिले

सुनो न! मैं पूरा सा नही हो पा रहा हूँ कुछ समेटने की कोशिश कर रहा हूँ पर खुद को बिखरा सा महसूस कर रहा हूँ मुझमें जिद्द न थी तुझे पाने की पर कुछ तो छूट सा गया है न जाने किस अन्जाने तलाश में आगे निकल चला हूँ दरसअल, याद आ रहा है वो सब कुछ जो बदल सा गया है तुम, तुम्हारा साथ और एहसास सब याद आ रहा है एक साया सा है मेरे साथ जिससे मैं ख़ुद को जुदा कर रहा हूँ भूल जाऊ, ऐसी कोशिश है मेरी पर भूलकर जैसे खुद अधूरा सा लग रहा हूँ।। #ख़्वाब #मेरे_सपने

मैं पूरा सा नही हो पा रहा हूँ

सुनो न! मैं पूरा सा नही हो पा रहा हूँ कुछ समेटने की कोशिश कर रहा हूँ पर खुद को बिखरा सा महसूस कर रहा हूँ मुझमें जिद्द न थी तुझे पाने की पर कुछ तो छूट सा गया है न जाने किस अन्जाने तलाश में आगे निकल चला हूँ दरसअल, याद आ रहा है वो सब कुछ जो बदल सा गया है तुम, तुम्हारा साथ और एहसास सब याद आ रहा है एक साया सा है मेरे साथ जिससे मैं ख़ुद को जुदा कर रहा हूँ भूल जाऊ, ऐसी कोशिश है मेरी पर भूलकर जैसे खुद अधूरा सा लग रहा हूँ।। #ख़्वाब #मेरे_सपने

इश्क़ मुबारक

उनसे मिला,  लगा हम इश्क़ में है फिर उनसे दिल लगा जवाब मिला वो मेरे दिल में है और हम गफ़लत में कि वो भी इस इश्क़ में है #इश्क़_मुबारक😷

कुछ ऐसा लिखना चाहता हूँ मैं

कुछ ऐसा ही लिखना चाहता हूँ मैं लिखना चाहता हूँ आज कुछ ऐसा जिससे बयाँ कर सकू अपने लब्जों को जिनमें बसी है, लाखों ऐसी अनकही बातें जिनसे तू अब भी रूबरू नही है || कुछ शब्दों में समेटकर बिखेरना चाहता हूँ अपने उन तमाम जज्बातों को जो अक्सर तुम्हारे सामने बयाँ होते हुए भी सिमटे से लगते है || कुछ न बोलते हुए भी बताना चाहता हूँ अपने उन तमाम ख्यालातों व ख्वाबो को जो अक्सर तेरे बिन कुछ यादों भर के लिए बुना करता मैं || तुम्हारी बातों पर रूठना नही, मनाना चाहता हूँ तुम्हे उन तमाम बातों और बुने सपनों के लिए जिससे तेरे चेहरे पर एक चाँद सी मुस्कान बिखरती है जो कुछ पल के लिए ही सही, मेरे दिल को एक सुकून देती है || तुम्हे रोकना नही, उड़ते देखना चाहता हूँ तुम्हे तुम्हारी ही दुनिया में उड़ते देख अपनी दुनिया के नज़रों में बसाना चाहता हूँ मैं तुम पास रहो या दूर, बस तेरे दिल को दिल से अपनाना चाहता हूँ मैं || कुछ ऐसा ही लिखना चाहता हूँ मैं जिससें बयाँ कर सकूं मेरे जहन में बसे तेरे एक- एक कड़ को हर समय बदलते तेरे-मेरे एहसासों के रंग को पल पल तुझे अपनी नजरों के सामने पाने के मन को लिख पाऊं या न पाऊं, बस समझाना चाहता

बिखरी_हुई_तुम

#बिखरी_हुई_तुम मैं तुझे किसी किताब के पन्नों में सिमेटने के बजाय हवाओं में बिखरे उन अनगिनत पन्नों में चाहता हूँ...  जिसके आखिरी पन्ने की तलाश में, मैं हर पल उन कोरे पन्ने को समेटता रहूं... जिसपर हमारे वो तमाम एहसास उभरे हो जो कभी लिखे ही नही गये |

प्रिय’ लिखकरमैं नीचे लिख दूँ नाम तुम्हारा,

‘प्रिय’ लिखकर मैं नीचे लिख दूँ नाम तुम्हारा, कुछ जगह बीच में छोड़ दूँ, नीचे लिख दूँ- ‘सदा तुम्हारा’ लिखा बीच में क्या यह तुमको पढ़ना है, कागज़ पर मन की परिभाषा का, अर्थ समझना है, जो भी अर्थ निकलोगी तुम, वह मुझको स्वीकार है, झुके नयन, मौन अधर या कोरा कागज़ अर्थ सभी का प्यार है। _आशुतोष राणा

सैकड़ों किरदार मेरी कहानी में...

सैकड़ो क़िरदार हैं मेरी कहानी में सबने निभाई अपनी-अपनी भूमिका किसी ने सुना, किसी ने सुनाया किसी ने गिराया तो किसी ने उठाया कुछ और भी हैं जो एक अजीब मोड़ पर ले आए मेरी जिंदगानी को समझौते, शिकवा, शिकायतें और कुछ लोग जो थे गलतफहमियों के शिकार पर पता था ये सब है बेबुनियाद व बेकार फिर शामिल हुए कुछ नए किरदार जो खड़े थे सही और गलत के डगर में भूत व भविष्य के अधर में किरदारों ने न समझा न सम्भाला पर मैंने अपनी कहानी को आगे बढ़ाया कोशिश थी, विश्वास और स्नेह रखूं बरकरार पर सबने मिलकर रच दिया एक नया किरदार सभी ने अपनी अपनी लिखी कहानी अब मैं अकेला विलन सबकी कहानी में ...

किताबों पर कवर औऱ फैशन

नए सत्र के लिए स्कूलों में प्रवेश प्रारम्भ हो चुके हैं, बच्चें एक बार फिर नई कॉपी, क़िताब और क्लास को लेकर उत्सुक हैं, वहीं गार्जियन इनके ख़र्चों के तले दबते जा रहें..लेकिन उनके लिए यह भी इतना ही जरूरी बन गया है, जितना कि घर में दो टाइम के सामान्य भोजन के लिए  राशन का होना। अब किताब के साथ साथ कॉपी और ड्रेस तक अधिकतर स्कूलों ने वहीं से लेना अनिवार्य कर दिया है.. आज से कुछ 15 साल पहले तक स्कूलों के यूनिफॉर्म के साथ कॉपी व किताबों के कवर तक के मानक तय थे कि कैसा दिखना चाहिए, नही तो जमकर मार पड़ती थी। कहीं फैशन में चुस्त दुरुस्त यानी एकदम फिटिंग वाला पैंट बनवा लिए, या अजय देवगन स्टाइल में बाल रख लिए तो मास्टर साहब बबरी कबार के कूटते थे। लेकिन अब स्कूलों में ड्रेसिंग सेंस, लिविंग स्टाइल से लेकर किताबों के   फैशन तक बदल गए हैं। बच्चों में नए सत्र के साथ एक विशेष प्रकार का शौक़ और खुशी होता था...अपने किताबों को सजाने की, जिसके लिए कभी कार्बन पेपर सबसे सस्ता व बेहतर ऑप्शन होता था हमारे लिए, उस खर्चे से भी बचने के लिए अख़बार सहारा होता था, ऐसे फ़िल्म या फैशन विशेषांक वाले पन्नो को अधिक तवज्जों दी जा

अँधेरे की गिरफ्त में समाहित होता “लालटेन”

  “लालटेन, लालटेन ज़रा के धरब रानी तोहके पजरिया ........”, गाँव –गिरोह से लेकर नगरों तक में रात के अँधेरे का आसरा “लालटेन” की पहचान और इसका उपयोग अब शायद केवल भोजपुरी के अश्लील गानों तक सिमट कर रह गया है | एक समय लालटेन हर घर में बहुत ही सामान्य और जरूरी वस्तु थी, लेकिन अब धीरे –धीरे जैसे यह एक इतिहास का हिस्सा बन गया है |  “लालटेन” शब्द अंग्रेजी भाषा के लॅन्टर्न शब्द का अपभ्रंश है | लालटेन को “डिबरी” का अपडेटेड और आधुनिक वर्जन कहा जा सकता है | दरअसल डिबरी अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में  बहुत प्रचलन में रहा है | घर में खाली पड़ी किसी काँच की बोतल या टीन के डब्बे से डिबरी बना लिया जाता था, जिसके ढ़क्कन में छेद करके एक लम्बा सूती कपड़ा डाल दिया जाता था और डिब्बे/काँच के बोतल में किरोसीन तेल भर दिया जाता था, ऐसे डिबरी तैयार हो जाता था | इसके बाद “लालटेन” उस समय के अनुसार थोड़ा खर्चीला लेकिन बेहतर विकल्प होता था | लालटेन में एक ख़ास तरह की बत्ती (मोटे कपड़े का एक फीता) पड़ता है और इसे भी किरोसीन तेल के माध्यम से जलाया जाता है, जिसे कुछ जगहों पर घासलेट और मिट्टी का तेल भी कहा जाता है | जहां तक मु