अब ये घर अखर रहा है मुझे अंदर ही अंदर बदल रहा है इसकी दीवारें अब जैसे अनंत सी लगती है सीढियां एक खाई सी खिड़कियां कुछ उम्मीदों की रौशनी लेकर आती है ये बिस्तर एक सहारे सा टिका पड़ा है बेचैन व कैद सा पड़ा हूँ मैं जिसपर सुकून हुआ करता था जहाँ हर पल वो पल भी जैसे बिखर रहा है मैं रातों में करवटे बदल रहा दिन के उजाले में खुद को व्यतीत होते देख रहा आपाधापी में व सपनों की उड़ान लिए कही दूर निकल आया हूँ आज मंजिल के राह पर अकेले बैठा हूँ अब गांव का घर याद कर रहा हूँ यहाँ समय कट रहा पर ये बंद घर जैसे मुझे काटने को दौड़ रहा दरवाज़े के बाहर कुछ इंसान भी है जिनके लिए अब अछूत सा हूँ मैं आज हालात मेरे बदले है पर स्वभाव व व्यवहार उनका बदल रहा।। #आईशोलेसन