Skip to main content

इश्क़-ए-लफ्फाज़ी (भाग-1)


अनेक कविताओं और कहानियों का संस्मरण करते हुए, आज यह धडकता दिल बहुत परेशान था | शायद कुछ कहना चाहता था, या खुद को समझाना चाहता था | दरअसल यह बेचैनी किसी चीज की नही थी बल्कि उसे, उसमें समाहित प्रेम ने विचलित कर रखा था | प्रेम कभी भी किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान या खुद से हो सकता है | प्रेम हमारे जीवन की स्वाभाविक प्रक्रिया है | जब आप किसी के साथ प्रेम में होते हैं तो यह आपके जीवन के सबसे ख़ूबसूरत लम्हों और एहसासों में से एक होता या यूं कह लें कि इसका स्थान सर्वोच्च होता है | यदि प्रेम का ताल्लुक किसी व्यक्ति विशेष से हो तो इसका तात्पर्य यह बिलकुल नही कि उसे हासिल किया जाय | उस व्यक्ति से आपके दिल से लगाव और उसके प्रति अटूट विश्वास व गहनता ही प्रेम का प्रतीक है | जब आप उसके छोटे-छोटे लम्हों में खुश होना सीख जाते है, उसके साथ कुछ पल बिताने व अपने नज़रों के सामने देखने भर से अन्दर ही अन्दर प्रफुल्लित होते है, सुकून महसूस करते हैं | यही प्रेम को जीने और महसूस करने का दौर होता है | जब आपको उस व्यक्ति से लगाव हो जाता है तो आप उसकी देखभाल व उसके प्रति अपने एहसासों व भावनाओं को आम जीवन व लोगो से इतर एक विशेष रूप में करते है, जो उस व्यक्ति या चीज को आम लोगो से अलग बनाती है | आपके एहसास कुछ इस कदर आप पर हावी होते हैं कि आप कुछ पल के लिए सही गलत भी भूल जाते है लेकिन समय समय पर सामने वाले के गलतियों को गलती बताना और उसके रूठने के बावजूद भी उसपर अडिग रहना प्रेम का ही भाग है | क्युकि आप की जिम्मेदारी अपने प्रेम के प्रति यह भी होती की आप उसे गलत रास्ते जाने से रोके | आपका प्रेम सामने वाले को आपके जीवन में महत्वपूर्ण बनाता है, उसे किसी बाध्यता से महत्व नही दिया जा सकता न ही पाया जा सकता | यह एक एहसास और उसके प्रति सम्मान होता जो व्यक्ति सामने वाले के एहसासों के प्रति जाहिर करता है | लेकिन जब आपके एहसासों का समाने वाला या आप खुद कोई दायरा निश्चित करने लगे तो आप का प्रेम स्वाभाविक न होकर एक रचे हुए रूप में दिखने लगता है | यदि आपके प्रेम में शर्ते या एहसासों पर लगाम कसा जाने लगे तो वह प्रेम के बजाय कांट्रेक्ट के रूप में बदल जाता है | आपका प्रेम आपका होना चाहिए, जिसमें आप अपनी भावनाओ या एहसासों की कद्र कर सके, न कि किसी व्यक्ति के स्वभाव व क्रियाकलापों से बदल जाय | आपका प्रेम तब तक ही सामने वाले को खास बनाता जब तक उसमें सम्मान की भावना हो | यदि आप अपने प्रेम को खास बनाए रखना चाहते हैं तो उसकी इज्ज़त करें, चाहे वह इज्जत उससे दूर जाकर ही क्यों न मिले जिससे आप प्रेम करतें है अन्यथा आपका प्रेम कब साधारण हो जाएगा आपको भी पता न लगेगा | यदि आप किसी से प्रेम करते हैं तो उसके होने न होने भर से प्रेम नही मरता आपका बशर्ते आपका प्रेम उस व्यक्ति प्रति स्वभाविक हो | इसलिए अपने प्रेम को साबित करने के बजाय महसूस करें | जब तक आपका प्रेम आपका है, किसी और पर निर्भर नही हैं तब तक आपका प्रेम जीवित है और उसके प्रति सम्मान भी |

Comments

Popular posts from this blog

इश्क़ ए लफ्फाज़ी (भाग 6)

यूं तो सफ़र एक शहर से दूसरे शहर चलता रहा, मौसम बदलता रहा, बदलते मौसम के साथ नए लोग मिलते गए , लोगो के साथ मिज़ाज़ बदलता गया, इस बदले मिज़ाज़ में अल्फ़ाज़ भी जुड़ते गए। अल्फ़ाज़ यूं ही नही जुड़े, इन एहसासों की एक लंबी कतार थी, वही कतार जिनमें उनकी चाहत पर फिसलने वालो की कमी न थी, और हम उनमें कहीं खड़े होने भर की जगह तलाश रहे थे । जगह बनाने की जद्दोजहद में समय बीतता गया, अपने अल्फ़ाज़ के साथ साथ एहसास भी गहराते गए और वो हौले हौले ही सही पर कुछ करीब आने लगे । हवा के झोंके सा कुछ ही पल में उनका बुखार सर चढ़ गया, और प्रेम की बारिश लिए मौसम बदला और ठंड में उनके एहसासों की गर्माहट लिए सफर माह ए मोहब्बत क पहुँच चुका था। यह मोहब्बत का महीना यूं तो सबके लिए बेहद ख़ास रहा, सबको अपनी अपनी मोहब्बत जताने की जैसे रेस लगी थी, वैसे देखा जाय तो मोहब्बत के लिए किसी खास दिन, समय या महीने का होना बिल्कुल आवश्यक नही लेकिन जो नए नए मोहब्बत का बुखार जो होता, कहाँ अब इस वैलेंटाइन वीक के गोली के बिना सही होने वाली होती । अब इस वैलेंटाइन वीक के भी कुछ छः सात वार थे, जिनमे टेडी डे, चॉकलेट डे, रोज़ डे सहित प्रोपोज़ल डे भी खास थे

वैश्वीकरण के दौर में हिंदी

वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप दुनिया की तमाम भाषाओं की भांति हिंदी के स्वरूप, क्षेत्र एवं प्रकृति में बदलाव आया है, प्रसार में वृद्धि हुई है। हिंदी न सिर्फ भारतीय मंडल अपितु समूचे भूमंडल की एक प्रमुख भाषा के रूप में उभरी है। यह हकीकत है कि नब्बे के दशक में विश्व बाजार व्यवस्था के तहत बहुप्रचारित उदारीकरण, निजीकरण, भूमंडलीकरण की प्रकृति से भारत अछूता नहीं रह सकता था। देर–सबेर उसे भी वैश्विक मंडी में खड़ा होना ही था। जाहिर है इस वैश्वीकरण ने जहाँ एक तरफ मुक्त बाजार की दलीलें पेश की, वहीं दूसरी तरफ दुनिया में एक नई उपभोक्ता संस्कृति को जन्म दिया, जिससे जनजीवन से जुड़ी वस्तुएं ही नहीं, भाषा, विचार, संस्कृति, कला सब–कुछ को एक ‘कमोडिटी’ के तौर पर देखने की प्रवृत्ति विकसित हुई। भाषा के रूप में निश्चय ही इस नवउपनिवेशवादी व्यवस्था ने राष्ट्रों की प्रतिनिधि भाषाओं को चुना। बहुभाषिक समाज व्यवस्था वाले भारत में हिंदी चूँकि संपर्क और व्यवहार की प्रधान भाषा थी इसलिए हिंदी को वैश्विक बाजार ने अपनाया। यहाँ वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप हिंदी के विकास–विस्तार पर जाने से पूर्व वैश्वीकरण की प्रक्रिया के बारे में