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इश्क़-ए-लफ्फाज़ी (भाग-3)


आज तुम पहले से ज्यादा कड़क सी महसूस हो रही थी | तुझसे मेरा ताल्लुक हो या न हो, पर तेरी ही तरह जलती हुई इस आदत से जरुर है | तुम बिन रहा भी न जाता और न ही हमेशा साथ रहा जा पा रहा है, पर जैसे ही नजरों के सामने आती, तुझे अपने लबों से लगाने का दिल जरुर चाहता | तुम दोनों में गजब की समानता है, दोनों ही गजब की मीठी और जहरीली हो | बशर्ते अंतर इतना है कि एक से इतनी मोहब्बत की जब चाहा अपने लबों से लगा लिया और अब दूसरे को बस तस्वीरों में देख नज़रों से दिल तक उतारना होता | वैसे तो दोनों चचेरी बहनों की तरह समझ आती हो, लेकिन मेरी नजर से किसी सौतन से कम नही लगती | क्योंकि जब कभी भी किसी एक के करीब आओं तो ठीक उसी तरह एक दूसरे की याद दिलाती जैसे एक सौतन दूसरे की, कभी तानों के बहाने तो कभी शिकायतों के बहाने | ये बात अलग तुम दोनों कभी अपनी मिठास तो कभी जलाकर एक दूसरे की याद दिलाती | पहली तुम (मेरा इश्क़) और दूसरी चाय | दोनों का ही लत कुछ यूं हैं कि एक पल में या तो सर दर्द उतार दें या पूरी ज़िन्दगी का दर्द आपके जीवन में उड़ेल दें | दोनों इस गुजर-बसर करती जिंदगी के अनमोल भाग है | आदत कह लें या नशा, जब कभी भी ये दोनों अपने करीब होती, दिल को एक अजीब सा सुकून मिलता है | दोनों से गजब की नजदीकी है | नजदीकी का दायरा भी कुछ यूं हैं कि दिल कर दिया उनके साथ समय गुजारने का या साथ होने का तो कितनी भी बुरी क्यों न हो, एक बार अपने लबों से लगाकर दिल में जरुर उतार लिया करता हूँ | लेकिन अपने इन लबों से भी उतनी ही मोहब्बत है जितनी तुम दोनों से | अपने लबों से मेरी इस मोहब्बत ने कभी कभी तुम्हें खुद से दूर करने पर मजबूर कर दिया | तुम्हारी मिठास कुछ यूं इन लबों पर उतर चुकी हैं कि तेरे होने न होने भर से इन एहसासों को जुदा नही करना चाहता मैं | इसलिए जब कभी इस गर्म चाय की तरह, जब कभी भी इस इश्क ने मेरे लबों में मिठास भरने के बजाय जलाने की कोशिश की, उसे इन लबों से दूर उतारकर ठंडा होने को छोड़ दिया | जिससे इस दिल में तेरे लिए नफरत न पैदा हो सकें | तेरी गैरमौजुदगी में भी ये दिल तुझसे उतना ही इश्क़ करता रहे, जितना तेरे मेरे पास होने से हल्की हल्की गर्माहट के साथ एक एहसासों में बंधा होता था | और आज फिर जब अपने इस इश्क की सौतन (चाय) को लबों से लगाया तो तुम्हारी याद आ गयी | हाँ ये बात अलग कि आज इसने जलाने के साथ साथ खुद के कड़क होने का भी संकेत दिया | 

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मैं पूरा सा नही हो पा रहा हूँ

सुनो न! मैं पूरा सा नही हो पा रहा हूँ कुछ समेटने की कोशिश कर रहा हूँ पर खुद को बिखरा सा महसूस कर रहा हूँ मुझमें जिद्द न थी तुझे पाने की पर कुछ तो छूट सा गया है न जाने किस अन्जाने तलाश में आगे निकल चला हूँ दरसअल, याद आ रहा है वो सब कुछ जो बदल सा गया है तुम, तुम्हारा साथ और एहसास सब याद आ रहा है एक साया सा है मेरे साथ जिससे मैं ख़ुद को जुदा कर रहा हूँ भूल जाऊ, ऐसी कोशिश है मेरी पर भूलकर जैसे खुद अधूरा सा लग रहा हूँ।। #ख़्वाब #मेरे_सपने

इश्क़-ए-लफ्फाज़ी (भाग-1)

अनेक कविताओं और कहानियों का संस्मरण करते हुए, आज यह धडकता दिल बहुत परेशान था | शायद कुछ कहना चाहता था, या खुद को समझाना चाहता था | दरअसल यह बेचैनी किसी चीज की नही थी बल्कि उसे, उसमें समाहित प्रेम ने विचलित कर रखा था | प्रेम कभी भी किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान या खुद से हो सकता है | प्रेम हमारे जीवन की स्वाभाविक प्रक्रिया है | जब आप किसी के साथ प्रेम में होते हैं तो यह आपके जीवन के सबसे ख़ूबसूरत लम्हों और एहसासों में से एक होता या यूं कह लें कि इसका स्थान सर्वोच्च होता है | यदि प्रेम का ताल्लुक किसी व्यक्ति विशेष से हो तो इसका तात्पर्य यह बिलकुल नही कि उसे हासिल किया जाय | उस व्यक्ति से आपके दिल से लगाव और उसके प्रति अटूट विश्वास व गहनता ही प्रेम का प्रतीक है | जब आप उसके छोटे-छोटे लम्हों में खुश होना सीख जाते है, उसके साथ कुछ पल बिताने व अपने नज़रों के सामने देखने भर से अन्दर ही अन्दर प्रफुल्लित होते है, सुकून महसूस करते हैं | यही प्रेम को जीने और महसूस करने का दौर होता है | जब आपको उस व्यक्ति से लगाव हो जाता है तो आप उसकी देखभाल व उसके प्रति अपने एहसासों व भावनाओं...

उन्होंने कुछ कहा और सोचते रहे हम

उन्होंने आज कुछ कहा और सोचते रहे हम "आज कुछ बदल से गये हम थोड़े से खुद में मगरूर से हो गये है हम" | किसी और को वजह बताते रहे वो, उन वजहों को खुद में तलाशते रहे हम बातों ही बातों में उलझ गये हम वो लम्हे बिताते गये, उन्हें पल पल समझाते गये हम हमारे ग़मों में उलझना चाहते थे वो, उन्हें अपनी ख़ुशी की वजह बताकर सुलझाते रहे हम|| राते कटनी शुरू ही हुई थी कि घिरते बादलो के बीच समाते गये वो मद्धम मद्धम चमकते तारों के बीच चाँद से चेहरे को तलाशते रहे हम दिन बदल गये, लम्हे बिछड़ गये खुद के बदलाव पर सोचते रहे हम | वो मेरे बदलाव पर आज सवाल उठाते रहे उन्हें अपनी मगरुरियत की वजह बताए बगैर चुप रहे हम अब आज फिर उन्होंने कुछ कहा और सोचते रहे हम ||