आज तुम पहले से ज्यादा कड़क सी महसूस हो रही थी | तुझसे मेरा ताल्लुक हो या न हो, पर तेरी ही तरह जलती हुई इस आदत से जरुर है | तुम बिन रहा भी न जाता और न ही हमेशा साथ रहा जा पा रहा है, पर जैसे ही नजरों के सामने आती, तुझे अपने लबों से लगाने का दिल जरुर चाहता | तुम दोनों में गजब की समानता है, दोनों ही गजब की मीठी और जहरीली हो | बशर्ते अंतर इतना है कि एक से इतनी मोहब्बत की जब चाहा अपने लबों से लगा लिया और अब दूसरे को बस तस्वीरों में देख नज़रों से दिल तक उतारना होता | वैसे तो दोनों चचेरी बहनों की तरह समझ आती हो, लेकिन मेरी नजर से किसी सौतन से कम नही लगती | क्योंकि जब कभी भी किसी एक के करीब आओं तो ठीक उसी तरह एक दूसरे की याद दिलाती जैसे एक सौतन दूसरे की, कभी तानों के बहाने तो कभी शिकायतों के बहाने | ये बात अलग तुम दोनों कभी अपनी मिठास तो कभी जलाकर एक दूसरे की याद दिलाती | पहली तुम (मेरा इश्क़) और दूसरी चाय | दोनों का ही लत कुछ यूं हैं कि एक पल में या तो सर दर्द उतार दें या पूरी ज़िन्दगी का दर्द आपके जीवन में उड़ेल दें | दोनों इस गुजर-बसर करती जिंदगी के अनमोल भाग है | आदत कह लें या नशा, जब कभी भी ये दोनों अपने करीब होती, दिल को एक अजीब सा सुकून मिलता है | दोनों से गजब की नजदीकी है | नजदीकी का दायरा भी कुछ यूं हैं कि दिल कर दिया उनके साथ समय गुजारने का या साथ होने का तो कितनी भी बुरी क्यों न हो, एक बार अपने लबों से लगाकर दिल में जरुर उतार लिया करता हूँ | लेकिन अपने इन लबों से भी उतनी ही मोहब्बत है जितनी तुम दोनों से | अपने लबों से मेरी इस मोहब्बत ने कभी कभी तुम्हें खुद से दूर करने पर मजबूर कर दिया | तुम्हारी मिठास कुछ यूं इन लबों पर उतर चुकी हैं कि तेरे होने न होने भर से इन एहसासों को जुदा नही करना चाहता मैं | इसलिए जब कभी इस गर्म चाय की तरह, जब कभी भी इस इश्क ने मेरे लबों में मिठास भरने के बजाय जलाने की कोशिश की, उसे इन लबों से दूर उतारकर ठंडा होने को छोड़ दिया | जिससे इस दिल में तेरे लिए नफरत न पैदा हो सकें | तेरी गैरमौजुदगी में भी ये दिल तुझसे उतना ही इश्क़ करता रहे, जितना तेरे मेरे पास होने से हल्की हल्की गर्माहट के साथ एक एहसासों में बंधा होता था | और आज फिर जब अपने इस इश्क की सौतन (चाय) को लबों से लगाया तो तुम्हारी याद आ गयी | हाँ ये बात अलग कि आज इसने जलाने के साथ साथ खुद के कड़क होने का भी संकेत दिया |
सुनो न! मैं पूरा सा नही हो पा रहा हूँ कुछ समेटने की कोशिश कर रहा हूँ पर खुद को बिखरा सा महसूस कर रहा हूँ मुझमें जिद्द न थी तुझे पाने की पर कुछ तो छूट सा गया है न जाने किस अन्जाने तलाश में आगे निकल चला हूँ दरसअल, याद आ रहा है वो सब कुछ जो बदल सा गया है तुम, तुम्हारा साथ और एहसास सब याद आ रहा है एक साया सा है मेरे साथ जिससे मैं ख़ुद को जुदा कर रहा हूँ भूल जाऊ, ऐसी कोशिश है मेरी पर भूलकर जैसे खुद अधूरा सा लग रहा हूँ।। #ख़्वाब #मेरे_सपने
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