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ऐ ज़िंदगी तू आज़मा मुझे


रूबरू कराऊंगा कभी तुझसे तुझ को
बदल दूंगा तेरे सारे तौर तरीकों को
आज बदल रहा हर पल दो पल तू
बदलने दे बस इस समय की करवट को
अपने हुनर तले लहरों सा बहा ले जाऊंगा तुझे

आज तू घुमा रहा दर बदर मुझे
एक रोज अपने सपनो के जंजाल में फिर उलझाऊंगा तुझे
आज तू बंधाओ की डोर सी
दो सिरो पर बहा रहा मुझे
एक रोज तुझे ही बाँधकर
अपने सपनों की राह बनाऊंगा मैं

#ऐ_ज़िन्दगी तू और आज़मा मुझे

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मैं पूरा सा नही हो पा रहा हूँ

सुनो न! मैं पूरा सा नही हो पा रहा हूँ कुछ समेटने की कोशिश कर रहा हूँ पर खुद को बिखरा सा महसूस कर रहा हूँ मुझमें जिद्द न थी तुझे पाने की पर कुछ तो छूट सा गया है न जाने किस अन्जाने तलाश में आगे निकल चला हूँ दरसअल, याद आ रहा है वो सब कुछ जो बदल सा गया है तुम, तुम्हारा साथ और एहसास सब याद आ रहा है एक साया सा है मेरे साथ जिससे मैं ख़ुद को जुदा कर रहा हूँ भूल जाऊ, ऐसी कोशिश है मेरी पर भूलकर जैसे खुद अधूरा सा लग रहा हूँ।। #ख़्वाब #मेरे_सपने

इश्क़-ए-लफ्फाज़ी (भाग-1)

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