बदलतें केवल शहर नही
इसके साथ बदलते हैं कई साथ
छूट जाते है कई साथी, दोस्त व यार
छूटते तो कई अजीज भी है
बस बदलतें नही उन रिश्तों के एहसास
सपनों की राह बहुत लंबी होती है
थोड़ी मुश्किल भी होती है
पर राहगीर बस मंजिल को तकता है
कभी विचलित न होता
डिगता नही
बदलता भी नही कभी अपने एहससात
पर छोड़ आता है अपना घर, द्वार और माँ-बाप।
रास्तें अब भी वही है
तुम मंजिल पर खड़े हो
आगे निकल चले हो
बेशक़!
शहर बदलो, उचाईयों पर उड़ो
अपने मंजिल को बढो
बस कभी पलट कर जरूर देखो
तुम्हारे कुछ अपने भी है
जो किसी शहर में कर रहे तुम्हारा इंतज़ार।
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