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कुछ ऐसा लिखना चाहता हूँ मैं

कुछ ऐसा ही लिखना चाहता हूँ मैं

लिखना चाहता हूँ आज कुछ ऐसा
जिससे बयाँ कर सकू अपने लब्जों को
जिनमें बसी है, लाखों ऐसी अनकही बातें
जिनसे तू अब भी रूबरू नही है ||

कुछ शब्दों में समेटकर बिखेरना चाहता हूँ
अपने उन तमाम जज्बातों को
जो अक्सर तुम्हारे सामने बयाँ होते हुए भी
सिमटे से लगते है ||

कुछ न बोलते हुए भी बताना चाहता हूँ
अपने उन तमाम ख्यालातों व ख्वाबो को
जो अक्सर तेरे बिन
कुछ यादों भर के लिए बुना करता मैं ||

तुम्हारी बातों पर रूठना नही, मनाना चाहता हूँ तुम्हे
उन तमाम बातों और बुने सपनों के लिए
जिससे तेरे चेहरे पर एक चाँद सी मुस्कान बिखरती है
जो कुछ पल के लिए ही सही, मेरे दिल को एक सुकून देती है ||

तुम्हे रोकना नही, उड़ते देखना चाहता हूँ
तुम्हे तुम्हारी ही दुनिया में उड़ते देख
अपनी दुनिया के नज़रों में बसाना चाहता हूँ मैं
तुम पास रहो या दूर, बस तेरे दिल को दिल से अपनाना चाहता हूँ मैं ||

कुछ ऐसा ही लिखना चाहता हूँ मैं
जिससें बयाँ कर सकूं
मेरे जहन में बसे तेरे एक- एक कड़ को
हर समय बदलते तेरे-मेरे एहसासों के रंग को
पल पल तुझे अपनी नजरों के सामने पाने के मन को
लिख पाऊं या न पाऊं, बस समझाना चाहता हूँ मैं ||

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