ऐसे न रहो !
अबकी लौट जाओ तुम
बार बार आए तुम
पल दो पल ठहरकर
फिर गुम हो गये तुम
जब जब आए कुछ बदल कर आए
कुछ छोड़कर तो कुछ अपनाकर आए
पर अबकी तुम खुद को छोड़ कर आए ||
कोशिश तमाम की मैंने
तुझे वापस पाने की
खुद को खुद सा तुझे सौपने की
बिखरे जज्बातों को समेटने की
बिगड़े बातो को बनाने की
तुझसे शिकायतों को भूल जाने की
अपनी नादानी को सुलझाने की
तुझसे किये वादों को निभाने की
बीते लम्हों को वापस लाने की
शायद ! अब तुझमें चाहत न रही मुझे अपनाने की ||
एक बार फिर तुम आए हो
मेरी आहट पर नही
तुम खुद में मुझे ढूढ़ते आए हो,
कुछ मेरी चाहत में
खुद की बेकरारी को ढूंढ लाए हो
पर कुछ तो भूल आए हो ||
मैं पल पल रोकना चाहा
नजरों से तुझे ओझल होने से
तुम पल पल रोकती रही
मुझे टूटने पर मजबूर होने से
अब जब तुम वापस आ चुके हो
मुझे बदला हुआ सा बोलकर
खुद बदल से गये हो
या खुद को कहीं छोड़ आए हो ||
अपना रहा तुझे
उलझे रिश्तों में तुम सुलझा रही मुझे
नही बर्दाश्त हो रही
तुम्हारें अहसासों की तपिश
तुम्हारा बार बार आकर जाना
पास न होकर भी खुद को महसूस कराना
रहने दो खुद में ही उलझे मुझे
नही सुलझाना चाहता
इस बदलाव की भेट चढ़ते इस मासूम रिश्ते को ||
क्युकी अबकी तुम लौट तो आए
शायद ! बस खुद को कहीं और छोड़ आए
मुझे मेरे एहसासों में तुम चाहिए
बस कुछ वक्त, कुछ अल्फ़ाज नही
एक बार फिर इस तरह आकर बेवजह किसी का जाना हो
इससे पहले लौट जाओ तुम
या लौट आओ तुम .....
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