कुछ बिखरे से हैं , कुछ सुलझे से है
एक दूसरे से दूर भी कुछ उलझे से है ||
मेरे नज़रों के सामने मेरे लब्ज भी कुछ सुलझे से है
शायद तेरी खुश्बू में कुछ उलझे से है ||
तेरे बिखरे जुल्फों को देखकर
मेरे एहसास तुझमें कुछ सुलझे ,मुझमें कुछ उलझे से है ||
ढ़लती शाम में तेरे जुल्फों पर खिडकियों से झाकती रौशनी
मेरे ख्वाबों की तरह तुझपर बिखरकर चमकते से है ||
तुम रुक रुक कर नजरें फेर रही तेरी तरफ बिसर रही मेरी चाहतो पर
तेरे आने की आहट पर, मेरी नजरों के बजाय तेरी खुश्बू की तरफ खीचतें से है ||
पल दो पल बाद आज फिर कुछ पल
हम पास होकर भी कुछ बिछड़े से है ||
मेरे ख्वाबों में तेरा साथ, तेरे साथ में मेरा अधूरा अहसास
अब भी कुछ बिखरे से है, कुछ उलझे से है ||
तुम साथ हो मेरे करीब, दिल के करीब
पर आज मेरे एहसास तेरी जुल्फों में बस उलझे से है ||
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