मेरे अल्फ़ाज़ अक्सर तुम्हें याद करतें है
जब भी कुछ लिखूं तो
बस तुम्हारी ही बात करते हैं
कई लम्हें जुड़े हैं तुमसे
कुछ एहसास बिखरे है मुझमें
समेटने की कोशिश करता हूँ
मैं शब्दों में जब इन्हें
वो तुम्हारे चाहत तले अक्सर टूट जाया करते है
अब मेरे जहन में तो हो तुम
बस साथ न हो।
मैं अब कोरे पन्नों पर अपने ज़ज़्बात नही उकेरता
खाली पन्ने ही हर दिन कुछ बात कहते है
तुम्हारा होना, न होना
मुझे हर दिन बस एक ख्वाब सा लगा
अब वही ख्वाबों के कतार किसी दिलचस्प किताब से लगते है
और उनके कोरे पन्ने अब भी तुम्हें याद करते है
हर किताब अब जैसे बस तुम्हारी बात करते हैं....।।
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