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सोशल मीडिया पर ठिठुरता सामाजिक जीवन


आज सोशल मीडिया आम से लेकर ख़ास व्यक्ति के जीवन का अभिन्न हिस्सा बना हुआ है| ख़ास लोगो की जमात जहां अक्सर ट्वीट करते नजर आती है, वही हमारे समाज के आम लोगो का एक धडा फेसबुक व व्हाट्सएप पर अपनी दुनिया बसाए हुए है| सोशल मीडिया जहां लोगो को एक दूसरे से जोड़ने और सन्देश को सांझा करने में सहयोगी है, वही समकालीन परिदृश्य में यह उपयोगकर्ता के साथ साथ समाज के लिए घातक भी साबित हो रहा है| प्रायः हम पाते है कि समाज का एक बड़ा हिस्सा किसी मुद्दे पर चर्चा के दौरान जो तथ्य प्रस्तुत करता है या यू कह ले कि उसे ही सच होने का दावा ठोकता है, वह कही न कही सोशल मीडिया से उपजी ज्ञान होती है| ख़ास तौर पर आधुनिक पीढ़ी किताबों व प्रमाणित तथ्यों को पढ़ने के बजाय सोशल मीडिया से उठे मुद्दे व दूसरो के आकड़ो व विचारों से अपना नजरिया तैयार कर ले रहा है| जो कि समाज में फैलती अराजकता व अफवाह का भी एक मुख्य कारण रहा है| फेसबुक, व्हाट्सएप जैसे तमाम माध्यमों पर सभी को अपने अपने विचार व्यक्त करें की आज़ादी है लेकिन मौजूदा परिदृश्य में सोशल मीडिया भी टीवी समाचार चैनलों की भाति रणभूमि बन चुकी है| सोशल मीडिया पर आज हम उपयोगकर्ता उपयोग न करते हुए उसका अपने सोच और उद्देश्यों के अनुरूप केवल प्रयोग कर रहा है| मौजूदा समय में जिस प्रकार सरकारी व राजनीतिक  योजनाओं  से लेकर व्यक्तिगत टिपण्णी की जा रही है, हम कही न कही धर्म, जाति व राजनैतिक पार्टियों में उलझ चुके है, एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप कर रहे है| समर्थन व विरोध जैसी तमाम गतिविधियाँ व सम्बन्धित घटनाएँ घटित हो रही है, लेकिन इसके परिणाम सकारात्मक कम व नकारात्मक अधिक देखने को मिल रहे है| समाज का एक बड़ा हिस्सा उसपर विचार करने के बजाय केवल उस रफ़्तार के साथ दौड़ में शामिल होने की कोशिश कर रहा है|
      दिन प्रतिदिन हमारे समाज में किसी मुद्दे व व्यक्ति विशेष पर फैलती अफवाह व अराजकाता को आज रोकने की जरुरत है| ख़ास तौर पर युवा वर्ग को समझने की जरुरत है कि जीवन व ज्ञान केवल फेसबुक व व्हाट्सएप तक ही नही सिमटा हुआ है| हमें सही मायने में उपयोगकर्ता बनने की जरूरत है न कि प्रयोगकर्ता| क्योकि जरूरी नहीं कि प्रयोग के परिणाम हमेशा सकारात्मक ही आए, ख़ास तौर पर जब उससे पूरा समाज प्रभावित हो सकता हो| सही मायने में आज सोशल मीडिया हमारे समाज को जोड़ने के बजाय अलग अलग गुटों में बाटने में ज्यादा प्रयोग हो रहा है, जिसपर हमें एक बार पुनः आभाषी दुनिया के बजाय उसी पुराने  चौपाटी, चौपाल व समाज में प्रत्यक्ष रूप से बैठकर हमें विचार करने की जरूरत है, बात करने की जरूरत है|

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