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कुछ तो वज़ह थी
सफ़र का ही हमसफ़र बन जाना
कुछ पल पास रहकर कहीं दूर सा निकल जाना
लौट कर तुझ तक वापस आना
यूं तो न था

हाँ, तुम कुछ अलग हो
कुछ बंदिशे भी है हमारे दरमियां
पर कुछ बात है, एहसास है
जिन्हें मैं कभी बतला न सका
कुछ तो वज़ह थी

कोई उम्मीद व आस नही है
बस हर रोज़ कुछ जताना चाहता हूँ
कई छिपे बात बताना चाहता हूँ
सहसा तुम्हारे पास होने पर भूल सा जाता हूँ
शायद, कोई हक जताना चाहता हूँ

अच्छी लगती है तुमसे नजरों की नजदीकियां
मेरे ख्वाबों में खेलती मनमर्जियाँ
हाँ, इन्हें इश्क़ न समझना
मुझे कोई आशिक़ न समझना

मैं एक एहसास हूँ
अपने जहन में उठती ज़ज़्बात हूँ
कई राज दफ़्न कर रखें है मैंने
अब हर रोज मैं खुद से गुफ्तगू करता हूँ

कई दफ़ा तुझसे नजरें चुराई
उस दफ़्न राज की पहचान मिटाई
पर खुद को समझा न सका
आज अपने अल्फ़ाज़ समझाना चाहता हूँ

दरअसल, तुम्हारा मुस्कुराना अच्छा लगता है
मुस्कुराते देख मुझे ख़ुद को सम्भालना अच्छा लगता है
कभी कहना न था, पर इतना कुछ कह गया
दरअसल, तुम्हारी मुस्कुराहट ही वह वजह थी।।

बात और कुछ नही,
बस तुम्हारी मुस्कुराहट यूं ही देखते रहना चाहता हूँ।।


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