हां, जायज़ था
मुझसे, तुम्हारा नाराज़ होना
ख़ुद के लिए नही
दूसरों के लिए परेशान होना
हां, मेरे ख़ुद के न होने का मतलब
'दूसरा' ही समझ आता था मुझे
रिश्तों की क़दर कर
सही और ग़लत की समझ के साथ
लोगों को अपना बनाना सिखाया तुमने
जो मेरी नज़र में परेशानी थी
उसे जिम्मेदारी बताया तुमने
सुबह की पहली किरण से
रात के चमकते चाँद तक
बात बात में फ़टकार लगाया तुमने
तमाम ऐसी बातें थी
जिसका मतलब समझाया तुमने
मैं समझ न सका था उस रोज़
दरअसल हर डॉट में भी बस प्यार जताया तुमने
माँ,
अब नाश्तें, खाने और उन गंदे कपड़ों की बात न करूँगा मैं
अब हर बात भी न बोल पाता मैं
क्योंकि अब सुनते सभी
बस कोई समझ न पाता मुझे
समझता था, परिवार से इतर भी एक जहाँ है
और इस अनोखी दुनियां में पाया भी मैंने
पर अब भी जब किसी रोज़
थक कर बिन खाए सो जाता हूँ मैं
तो ग्लास से भरा दूध और बालों की मालिश याद करता हूँ मैं
हां,
बड़ा तो हो चुका हूँ मैं
जो अब तुम भी मुझे जताती हो
पर बहुत छोटा महसूस करता हूँ मैं
जब अपनी ज़रूरत पर भी
मुझे देख, तुम चुप रहती
और फिर भी शायद मैं समझ न पाता तुम्हें
मिली हर आज़ादी
जिसकी चाहत थी
उस बचपन की नादानी में
आज इन रस्तों पर जब कुछ दूर निकल चुका हूँ
समझ पा रहा हूँ
तेरा मुझे रोकना भी जायज़ था
मैं ही न समझ सका
शायद तुम सही कहती थी
मैं नालायक था ।
#तुम्हारा_नालायक_बेटा
मुझसे, तुम्हारा नाराज़ होना
ख़ुद के लिए नही
दूसरों के लिए परेशान होना
हां, मेरे ख़ुद के न होने का मतलब
'दूसरा' ही समझ आता था मुझे
रिश्तों की क़दर कर
सही और ग़लत की समझ के साथ
लोगों को अपना बनाना सिखाया तुमने
जो मेरी नज़र में परेशानी थी
उसे जिम्मेदारी बताया तुमने
सुबह की पहली किरण से
रात के चमकते चाँद तक
बात बात में फ़टकार लगाया तुमने
तमाम ऐसी बातें थी
जिसका मतलब समझाया तुमने
मैं समझ न सका था उस रोज़
दरअसल हर डॉट में भी बस प्यार जताया तुमने
माँ,
अब नाश्तें, खाने और उन गंदे कपड़ों की बात न करूँगा मैं
अब हर बात भी न बोल पाता मैं
क्योंकि अब सुनते सभी
बस कोई समझ न पाता मुझे
समझता था, परिवार से इतर भी एक जहाँ है
और इस अनोखी दुनियां में पाया भी मैंने
पर अब भी जब किसी रोज़
थक कर बिन खाए सो जाता हूँ मैं
तो ग्लास से भरा दूध और बालों की मालिश याद करता हूँ मैं
हां,
बड़ा तो हो चुका हूँ मैं
जो अब तुम भी मुझे जताती हो
पर बहुत छोटा महसूस करता हूँ मैं
जब अपनी ज़रूरत पर भी
मुझे देख, तुम चुप रहती
और फिर भी शायद मैं समझ न पाता तुम्हें
मिली हर आज़ादी
जिसकी चाहत थी
उस बचपन की नादानी में
आज इन रस्तों पर जब कुछ दूर निकल चुका हूँ
समझ पा रहा हूँ
तेरा मुझे रोकना भी जायज़ था
मैं ही न समझ सका
शायद तुम सही कहती थी
मैं नालायक था ।
#तुम्हारा_नालायक_बेटा
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