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इश्क़ ए लफ्फाज़ी (भाग 6)

यूं तो सफ़र एक शहर से दूसरे शहर चलता रहा, मौसम बदलता रहा, बदलते मौसम के साथ नए लोग मिलते गए , लोगो के साथ मिज़ाज़ बदलता गया, इस बदले मिज़ाज़ में अल्फ़ाज़ भी जुड़ते गए। अल्फ़ाज़ यूं ही नही जुड़े, इन एहसासों की एक लंबी कतार थी, वही कतार जिनमें उनकी चाहत पर फिसलने वालो की कमी न थी, और हम उनमें कहीं खड़े होने भर की जगह तलाश रहे थे । जगह बनाने की जद्दोजहद में समय बीतता गया, अपने अल्फ़ाज़ के साथ साथ एहसास भी गहराते गए और वो हौले हौले ही सही पर कुछ करीब आने लगे । हवा के झोंके सा कुछ ही पल में उनका बुखार सर चढ़ गया, और प्रेम की बारिश लिए मौसम बदला और ठंड में उनके एहसासों की गर्माहट लिए सफर माह ए मोहब्बत क पहुँच चुका था। यह मोहब्बत का महीना यूं तो सबके लिए बेहद ख़ास रहा, सबको अपनी अपनी मोहब्बत जताने की जैसे रेस लगी थी, वैसे देखा जाय तो मोहब्बत के लिए किसी खास दिन, समय या महीने का होना बिल्कुल आवश्यक नही लेकिन जो नए नए मोहब्बत का बुखार जो होता, कहाँ अब इस वैलेंटाइन वीक के गोली के बिना सही होने वाली होती । अब इस वैलेंटाइन वीक के भी कुछ छः सात वार थे, जिनमे टेडी डे, चॉकलेट डे, रोज़ डे सहित प्रोपोज़ल डे भी खास थे । इस सप्ताह में अपने लिए बस दो ही दिन खास थे, एक रोज डे और दूसरा बर्थडे । सामान्य तौर पर वैलेंटाइन से 2 दिन पहले वाला दिन किस डे होने की वजह से जो आम जन के लिए ख़ास था, वही अपने लिए अपनी मासूका का बर्थडे होने की वज़ह से मिस करने वाला और कुछ ज्यादा ही खास था, इसलिए साहब को अपनी मोहब्बत से भी कुछ आस थी, उस खास दिन वह दूर होते हुए भी कुछ पास थी, जब हम अपने मोबाइल में कैद कोलकत्ता में बैठे दिल्ली की तस्वीर निहार रहे थे और उत्तर व पश्चिम के संगम के सपने संजोते हुए उस पहली दफ़ा देखे उसके मुस्कान को याद कर मुस्कुरा रहे जब सुबह सुबह बिखरी छटाओं में मौसम थी रंगीली, कुछ फूलों सी फिजाओं में थी वो लिपटी, उसकी ड्रेस थी कुछ नीली और पीली, उनके जुल्फों में उलझ जाने को चाहता था दिल जो हल्की हल्की सी थी गीली, बस लग गयी थी इस प्रेम माह में उनसे दिल्लगी, दिल तो बहुत लगाए पर चुरा ले गयी तो थी मेरी दिल्ली । इन दिल्ली की गलियों में दिल लगता गया, मैं कुछ गुम से होता गया, जितनी दफ़ा निकला समझने इस दिल्ली से दिल्लगी को, दिल्ली पास होकर भी कुछ दूर सी ही रही, इन गलियों से इतर आसमानों की सफ़र में हूँ, पर सफ़र बदला, शहर बदला पर इस बदलते समय के साथ बातों और यादों में उनका जिकर न बदला ।।

#दिल्ली_की_माह_फरवरी 

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मैं पूरा सा नही हो पा रहा हूँ

सुनो न! मैं पूरा सा नही हो पा रहा हूँ कुछ समेटने की कोशिश कर रहा हूँ पर खुद को बिखरा सा महसूस कर रहा हूँ मुझमें जिद्द न थी तुझे पाने की पर कुछ तो छूट सा गया है न जाने किस अन्जाने तलाश में आगे निकल चला हूँ दरसअल, याद आ रहा है वो सब कुछ जो बदल सा गया है तुम, तुम्हारा साथ और एहसास सब याद आ रहा है एक साया सा है मेरे साथ जिससे मैं ख़ुद को जुदा कर रहा हूँ भूल जाऊ, ऐसी कोशिश है मेरी पर भूलकर जैसे खुद अधूरा सा लग रहा हूँ।। #ख़्वाब #मेरे_सपने

इश्क़-ए-लफ्फाज़ी (भाग-1)

अनेक कविताओं और कहानियों का संस्मरण करते हुए, आज यह धडकता दिल बहुत परेशान था | शायद कुछ कहना चाहता था, या खुद को समझाना चाहता था | दरअसल यह बेचैनी किसी चीज की नही थी बल्कि उसे, उसमें समाहित प्रेम ने विचलित कर रखा था | प्रेम कभी भी किसी व्यक्ति, वस्तु, स्थान या खुद से हो सकता है | प्रेम हमारे जीवन की स्वाभाविक प्रक्रिया है | जब आप किसी के साथ प्रेम में होते हैं तो यह आपके जीवन के सबसे ख़ूबसूरत लम्हों और एहसासों में से एक होता या यूं कह लें कि इसका स्थान सर्वोच्च होता है | यदि प्रेम का ताल्लुक किसी व्यक्ति विशेष से हो तो इसका तात्पर्य यह बिलकुल नही कि उसे हासिल किया जाय | उस व्यक्ति से आपके दिल से लगाव और उसके प्रति अटूट विश्वास व गहनता ही प्रेम का प्रतीक है | जब आप उसके छोटे-छोटे लम्हों में खुश होना सीख जाते है, उसके साथ कुछ पल बिताने व अपने नज़रों के सामने देखने भर से अन्दर ही अन्दर प्रफुल्लित होते है, सुकून महसूस करते हैं | यही प्रेम को जीने और महसूस करने का दौर होता है | जब आपको उस व्यक्ति से लगाव हो जाता है तो आप उसकी देखभाल व उसके प्रति अपने एहसासों व भावनाओं...

उन्होंने कुछ कहा और सोचते रहे हम

उन्होंने आज कुछ कहा और सोचते रहे हम "आज कुछ बदल से गये हम थोड़े से खुद में मगरूर से हो गये है हम" | किसी और को वजह बताते रहे वो, उन वजहों को खुद में तलाशते रहे हम बातों ही बातों में उलझ गये हम वो लम्हे बिताते गये, उन्हें पल पल समझाते गये हम हमारे ग़मों में उलझना चाहते थे वो, उन्हें अपनी ख़ुशी की वजह बताकर सुलझाते रहे हम|| राते कटनी शुरू ही हुई थी कि घिरते बादलो के बीच समाते गये वो मद्धम मद्धम चमकते तारों के बीच चाँद से चेहरे को तलाशते रहे हम दिन बदल गये, लम्हे बिछड़ गये खुद के बदलाव पर सोचते रहे हम | वो मेरे बदलाव पर आज सवाल उठाते रहे उन्हें अपनी मगरुरियत की वजह बताए बगैर चुप रहे हम अब आज फिर उन्होंने कुछ कहा और सोचते रहे हम ||