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इश्क़-ए-लफ्फाज़ी (भाग- 5)



प्यार में धोका खाने के बाद या प्यार में असफलता हाथ लगने के बाद उदास नही होना है। जितनी बेहयाई प्यार को पाने के लिये दिखाई है न उससे थोड़ा कम बेहया भी बन गये तो भी ज़िन्दगी मजे में कटेगी। हाँ! माना कि दुःख होता है! नींद गायब हो जाती है! कुछ खाने पीने का मन नही करता लेकिन इसका मतलब ये नही की तुम दुनियॉ भूल कर देवदास बने बैठ जाओ ससुर।

अरे ये भी हो सकता है कि तुम्हें कोई अपने सोलह सोमवार वाले ब्रत में माँग रहा हो और उस व्रत की ताकत तुम्हारे इस प्यार को पाने की कोशिशों से कही ज्यादा हो। बेशक़ पियो दारू और सिगरेट। तुम्हारी ज़िन्दगी है! तुम्हे ही भोगना है ससुर..कौन रोक सकता है भला। पर लड़की के गम से उबरने के नाटक में ये सब मत किया करो। भाई दारू के बहाने किसी और को या खुद को बदनाम क्यों करना।

कोई जरूरत नही किसी ज़ोया के प्यार में कुन्दन बनने की! खून थूक के मरने की। पहचानो यार किसी बिंदिया को जो तुमसे प्यार करती है, जो तुमपे अपना सब कुछ हार सकती है और करो प्यार उससे। यहाँ कोई किसी को नही रोकता। खून थूक कर मर भी गये तो भी ज़ोया आवाज़ नही लगाने वाली। आख़िरकार सब कुछ पाना ही तो जिंदगी नही है ना! अरे कभी खुद को किसी के हवाले ऐसे करो की जैसे उसने सब कुछ पा लिया हो तुम्हे पाकर, उसे सब कुछ मिल गया हो तुम्हारे मिलते ही, फिर महसूस करो उस प्रेम को। यक़ीन मानों प्रेम, प्रेम ही होता है चाहे तुम किसी और से करो या कोई और तुमसे करे।

जो कुछ भी है अभी है, यहीं है। दूसरे जन्म की बातें बस दिल बहलाने के लिये होती हैं। इस जन्म के नाकाम हो कर जिंदगी बर्बाद करने पर तुले हो तो सुनो! अगला जीवन इस लायक तुम्हे मिलेगा ही नही। तो एक काम करो! जरूरी नही की प्यार करो! कभी किसी का प्यार बन कर भी देखो। उसे वो खुशियाँ दो जो तुम ख़ुद पाना चाहते हो किसी दूसरे से। उठो और इसी जन्म में प्यार को महसूस करो (विवेकानंद जी वाला डायलॉग याद है न 😉), जो भी अच्छा बुरा हुआ उसे भूल कर! अच्छी यादों को साथ लेकर बुरी यादों को भुला कर।

उठो! चलो गँगा किनारे अस्सी घाट ठंढी रेत पर अपने प्यार को पाने की ज़िद छोड़कर, प्यार के चक्कर में घुटते हुये खुद को छोड़कर, किसी का प्यार बनने, किसी को खुशियाँ देने, और उसमें अपनी ख़ुशियों को ढूंढने। क्योंकि प्यार का मतलब किसी को ''पा लेने'' से लेकर ''अपना समर्पण कर देना'' दोनों ही होता है.....❤

-विष्णु कुमार 

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इश्क़-ए-लफ्फाज़ी (भाग-1)

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