सुनो न! मैं पूरा सा नही हो पा रहा हूँ कुछ समेटने की कोशिश कर रहा हूँ पर खुद को बिखरा सा महसूस कर रहा हूँ मुझमें जिद्द न थी तुझे पाने की पर कुछ तो छूट सा गया है न जाने किस अन्जाने तलाश में आगे निकल चला हूँ दरसअल, याद आ रहा है वो सब कुछ जो बदल सा गया है तुम, तुम्हारा साथ और एहसास सब याद आ रहा है एक साया सा है मेरे साथ जिससे मैं ख़ुद को जुदा कर रहा हूँ भूल जाऊ, ऐसी कोशिश है मेरी पर भूलकर जैसे खुद अधूरा सा लग रहा हूँ।। #ख़्वाब #मेरे_सपने
शादियों में तोरण... हाल ही में मालवा के एक गाँव में शादी में जाना हुआ, जहाँ "तोरण" परंपरा से रूबरू हुआ । यह परंपरा मेरे लिए नया था क्योंकि इससे पहले मैंने ऐसा कुछ नही देखा था । हो सकता है कि राजपूतों की शादियों में इस परंपरा का निर्वहन किया जाता हो, लेकिन राजस्थान व मालवा क्षेत्र में इसका विशेष प्रभाव है । हमारे देश में तोरण बांधने की परम्परा सदियों पुरानी है, घर के मुख्य द्वार को तोरण द्वार भी कहा जाता है। शादियों में दूल्हा तोरण मारकर अंदर जाता है। जिस तोरण को मारा जाता है वो लकडी का बना होता है और उस पर तोता (तोता पक्षी) का सांकेतिक चित्र ऊकेरा जाता है । प्राचीन दंत की कथा अनुसार, तोरण नाम का एक राक्षस था, जो शादी के समय दुल्हन के घर के द्वार पर तोते का रूप धारण कर बैठ जाता था।जब दूल्हा द्वार पर आता तो वह उसके शरीर में प्रवेश कर दुल्हन से स्वयं शादी रचाकर उसे परेशान करता था। एक बार एक साहसी और चतुर राजकुमार की शादी के वक्त जब दुल्हन के घर में प्रवेश कर रहा था अचानक उसकी नजर उस राक्षसी तोते पर पड़ी और उसने तुरंत तलवार से उसे मार गिराया और शादी संपन्न की। बताया जाता है कि उ