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ख़ामोश हूँ
इस चहल पहल में बसा
कुछ यादों के भीड़ में खड़ा
बस खामोश हूँ।

देख रहा हूँ
तुम्हारे चेहरे के बदलते इन रंगों को
पढ़ रहा हूँ
जीवन के बदलते हर ढंग को
कैसे तुम कुछ लम्हों में आकर
सदियों सी छाप छोड़ गए
दरअसल खुद की परछाई में
अब भी तुमको समझ रहा हूँ ।।

शायद समझ चुका हूँ
या समझने की कोशिश कर रहा हूँ
पर तुम निकल चुके हो
बदल चुके हो
मैं अब भी आसमां सी खुली इस जीवन मे
गुज़रे लम्हों की कहानियों को सुन रहा हूँ
पर खामोश हूँ ।

ख़ामोश हूँ
क्योंकि इस बदलतें वक़्त के साथ
तुम्हें बदला हुआ देखकर
अब भी मैं, खुद को नही बदलना चाहता
क्योकिं अब भी मैं वही हूँ
बस ख़ामोश हूँ ।।


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